एक कथा: रसोई का सामान न होता तो भोलेबाबा और भोले गंगाजल पीकर रह जाते

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एक गाँव के बाहर छोटा सा शिव मंदिर था, जिसमें एक वृद्ध पुजारी रहते थे। एक दिन एक गरीब माँ अपने नन्हे से बालक को मंदिर के द्वार पर छोड़कर चली गई। बहुत खोजने पर भी पुजारी जी को बालक के परिवार का कुछ भी पता न चला।

जब गाँव का भी कोई व्यक्ति उस बालक का लालन-पालन करने को तैयार न हुआ तो पुजारी जी ने भगवान् शिव की इच्छा समझकर उसे अपने पास रख लिया और उसका नाम भोला रख दिया।

गाँव के श्रद्धालु भक्तों से जो कुछ प्राप्त होता, उसी से भगवान् शिव का, पुजारीजी का और बालक भोला का किसी तरह गुजारा चलता। यदि किसी दिन कम भी पड़ता तो पुजारी जी बालक और भगवान् को भोग लगाकर स्वयं गंगाजल पीकर रह जाते।

धीरे-धीरे भोला बड़ा होने लगा और अब वह पुजारी जी के कामों में हाथ बँटाने लगा। वृद्ध पुजारी जी के थके-हारे हाथों को कुछ आराम मिलने लगा, इसलिए उन्होंने भोला को मंदिर की सफाई, भगवान् शिव की पूजा, उनको भोग लगाने और उनकी आरती करने की विधि अच्छी प्रकार समझा दी।अब वे स्वयं भगवान् शिव के नाम जप और संकीर्तन में समय व्यतीत करने लगे। एक दिन भगवान् शिव के मंगलकारी नाम शिव, शिव, शिव, शिव का जप करते हुए ही उनके प्राण छूट गए।

अब बालक भोला का इस संसार में भगवान् शिव के सिवा और कोई सहारा न रहा। उसने पुजारीजी की ये तीन बातें कभी नहीं भूलीं…

भगवान् भोलेनाथ शिव शंकर को ताजी-गर्म रसोई का ही भोग लगाना।

भगवान् को भोग लगाए बिना स्वयं कुछ भी नहीं खाना।

भगवान् शिव पर विश्वास रख कर कभी भी किसी भी वस्तु का संग्रह न करना, बासी भोजन का भी नहीं।

यदि कोई भक्त पहले से बना भोजन या मिठाई मंदिर में दे जाता, तो बालक भोला उसे गरीबों में बाँट देता। वह ताजी रसोई बनाकर ही भगवान् को भोग लगाता, उसके बाद ही स्वयं प्रसाद ग्रहण करता और यदि बचता तो उसे बाँट देता। यदि रसोई बनाने को सामग्री न होती, तो भोलेबाबा और भोला भगत दोनों गंगाजल पीकर ही रह जाते। एक बार बरसात का मौसम आया और तीन-चार दिन तक मूसलाधार वर्षा होने से मंदिर में एक भी भक्त नहीं झाँका।

भोला अपने भोलेबाबा को गंगाजल का ही भोग लगाता और उसे ही पीकर रह जाता। भोले बाबा बालक की भक्ति और सहनशक्ति की परीक्षा लेते रहे।

किंतु आखिर में अपने भक्त बालक को भूख से तड़पते देख उनसे रहा न गया।

वे सेठ के नौकर का रूप धरकर, हाथ में भोजन सामग्री की पोटली लेकर वर्षा में भीगते हुए मंदिर के द्वार पर जा पहुँचे।उन्होंने आवाज लगाकर भोला को बुलाया और उसके हाथ में पोटली देते हुए बोले..

सेठजी ने यह सीधा (कच्चा राशन) भेजा है। इससे रसोई बनाओ, भोग लगाओ और स्वयं भी प्रसाद पाओ। मैं कल फिर आऊँगा।

भोला भगत ने आशीर्वाद देकर उसे विदा किया और सूखी-गीली लकड़ियों के धुएँ में गर्म रसोई बनाकर भोलेबाबा को भोग लगाया।

पूरे बरसात के मौसम में भोलेबाबा नौकर के वेष में भोला भगत को सीधा देने आते रहे और स्वयं भी गर्मागर्म रसोई का भोग पाते रहे।

एक दिन भोला भगत ने सोचा कि सेठजी को सीधा भेजते हुए चार महीने हो चले हैं, किंतु वे स्वयं कभी मंदिर में भोले बाबा का प्रसाद ग्रहण करने नहीं आए। अगले दिन जब भोले बाबा नौकर के वेष में सीधे की पोटली देने आए तो भोला भगत उनसे बोला…

भाई ! तुम्हारे इतने धर्मात्मा सेठजी कभी स्वयं मंदिर में प्रसाद लेने नहीं आए। इस कारण मेरा हृदय अत्यंत दुःखी हो रहा है।

अपने सेठजी से कहना कि कल वे भी मंदिर में प्रसाद ग्रहण करने अवश्य पधारें।

सुनकर नौकर बने भोलेबाबा चौंककर घबरा उठे और बोले…

पुजारीजी ! सेठजी मेरे द्वारा आपको सीधा भेजते हैं, आप इससे भगवान् को भी भोग लगा लेते हैं और स्वयं भी प्रसाद पाते हैं।

फिर सेठजी को बीच में बुलाने की क्या जरुरत है ? जैसा चल रहा है, वैसे ही चलने दीजिए न..!

भोला बोला, ऐसे कैसे चलने दूँ ? आपके धर्मात्मा सेठजी इतने दिनों से सीधा भेज रहे हैं, क्या मैं उन्हें भगवान् का प्रसाद देने का अपना कर्तव्य भी पूरा न करूँ ?

मैं किसी का उधार खाने वाला नहीं हूँ। अपने सेठजी से कह देना कि यदि कल भोले बाबा का प्रसाद ग्रहण करने न पधारे, तो मैं उनका सीधा लेना बंद कर दूँगा। नौकर बने भोलेबाबा तो अपने भोले भगत की अकड़ देखकर काँप उठे और यह सोचकर मन ही मन हँसे कि वाह ! आज तो लेने वाला ही देने वाले पर धौंस दिखा रहा है।

लेकिन सरल हृदय भक्त के मनोभाव पर रीझकर वे बोले, ठीक है पुजारीजी ! कल सेठजी मंदिर में प्रसाद ग्रहण करने जरूर पधारेंगे।

दूसरे दिन बड़े सबेरे ही भोलेबाबा नौकर के वेष में दूध और बहुत सारी भोजन सामग्री लेकर मंदिर पहुँच गए।

भोला चौंकते हुए बोला, भाई ! आज इतना सारा सीधा किसलिए ले आए ?

नौकर बने भोलेबाबा बोले, पुजारीजी ! भूल गए क्या ? आज आपने सेठजी को प्रसाद के लिए बुलाया है।

इसलिए आप छककर रसोई बनाइए और भोलेबाबा को भोग लगाइए। हाँ ! यह तो बता दीजिए कि सेठजी किस समय पधारें ?

भोला ने प्रसन्न होकर उन्हें सेठजी के आने का समय बता दिया। अब भोलाभगत की इच्छा पूर्ण करने के लिए भोलेबाबा कैलाश पर सेठ का रूप धारण करने लगे।

इधर अपने स्वामी को एक प्यारे भक्त के यहाँ जाने का समाचार सुनकर ममतामई अन्नपूर्णा माँ पार्वती भी भला कैसे पीछे रहतीं ?

वे भी पति की आज्ञा लेकर सेठानी का रूप धारण करने में जुट गईं।

भोलेबाबा ने अपने गले से मुंडों की माला उतार दी, शरीर पर लगी भस्म, कमर पर पहना हुआ बाघांबर और बाँहों और कानों में पहने साँपों के हार भी उतारकर रख दिए।

उन्होंने एक मखमल का सुंदर कुर्ता धारण कर लिया। अपनी जटाएँ सीधी कर गंगा और चंद्रमा को उसमें छिपा लिया और ऊपर से एक सुंदर रंग-बिरंगी पगड़ी पहन ली।

सदैव नंगे पैर विचरण करने वाले शिवजी ने आज अपने पैरों में रेशमी जूतियाँ धारण कर लीं।

हाथ का त्रिशूल और डमरू भोलेबाबा ने नंदी के हाथ में थमा दिया और अपने हाथ में एक सुंदर छड़ी लेकर पार्वतीजी के तैयार होन  जब पार्वतीजी और शिवजी ने एक-दूसरे को सेठ-सेठानी के वेष में देखा, तो वे चकित होकर एक-दूसरे को निहारते ही रह गए।

दोनों एक-दूसरे को देख-देखकर निहाल हुए जा रहे थे। इससे पहले उन्होंने कभी एक-दूसरे का ऐसा सुंदर रूप देखा ही नहीं था।

जब भगवान् गौरीशंकर सेठानी-सेठ का रूप धरकर कैलाश से अपने भक्त के यहाँ निमंत्रण उड़ाने चले, तो गणेश, कार्तिकेय, नंदी, ऋषि-मुनि, देवता, देवांगनाएँ भी उन्हें देखकर ठगे से रह गए।

सेठ बने शिवजी अपने हाथ में ली हुई छड़ी को अदा से घुमाते हुए पृथ्वी पर टेकते हुए चल रहे थे…

और उनके पीछे-पीछे बगल में पर्स दबाए, अपनी सेंडल से टक-टक और पायलों से छन-छन की मधुर ध्वनि करती हुई माँ पार्वती सेठानी बनी हुई चल रही थीं।

इधर भोला भगत आज सुबह से ही सेठजी के स्वागत में भाँति-भाँति के पकवान बनाने में जुटा हुआ था।

अपने भोलेबाबा का भोग तो वह चलते-फिरत… अतः आज उसने अपनी सारी पाक कला झोंक डाली थी।

उसने सेठजी द्वारा भेजे हुए चावल धोकर खीर बनाई, उसे धीमी आँच पर पकाकर गाढ़ा किया और उसमें सेठजी के द्वारा भेजे हुए पिस्ते, बादाम, केसर, चिलगोजे, किशमिश डाले।

मिर्च और अदरख को कूटकर, उसे बाजरा, बेसन और गेहूँ के आटे में भर-भरकर मोटे-मोटे मिस्से टिक्कड़ बनाए।

रसोई बनाकर भोला भगत पुनः स्नान करने चला गया ताकि स्वच्छ वस्त्र पहनकर भोले बाबा को भोग लगा सके और सेठजी को उनका प्रसाद पवा सके।

जब भोला भगत स्नान करके लौटा तो देखा सेठजी प्रसाद ग्रहण करने के लिए स्वयं तो आए ही हैं, संग में अपनी सेठानीजी को भी ले आए हैं।

भोला ने झट दोनों से राम-राम की, उन्हें आसन देकर बैठाया और बोला…

मैं अभी भगवान् को भोग लगाकर आता हूँ, फिर आपको प्रसाद परोसूँगा।

भावना के भूखे भोलेबाबा से भूख सहन नहीं हो पा रही थी। इसलिए वे बोले..

पुजारीजी ! भगवान् को जल्दी से भोग लगाइए, मुझसे भूख सहन नहीं होती।
भोला भगत बोला, सेठजी ! भूख तो मुझे भी बड़े जोर से लग रही है, किंतु मैं अपनी भूख के कारण भगवान् को भोग लगाना नहीं भूलता।

यदि दुनिया के सारे लोग इसी तरह अपनी भूख के लिए भगवान् को भोग लगाना भूल जाएँ तो भगवान् तो भूखों मर जाएँगे।

सेठजी बने भोलेबाबा एक पत्तल उठाते हुए बोले, पुजारीजी ! आप भोग लगाइए। इधर मैं पत्तल परोस लेता हूँ। मुझसे भूख सहन नहीं हो पा रही है।

भोला भगत सेठजी बने भोलेबाबा को डाँटते हुए बोला, सेठजी ! भगवान् के काम में न तो जल्दीबाजी चलती है और न कंजूसी।

मैं जब तक भगवान् को भोग नहीं लगा लेता, आप रसोई के पास भी नहीं फटक सकते।

चुपचाप इधर बैठ जाइए और ॐ नमः शिवाय जपते रहिए। मैं अभी आता हूँ और आपको पेट भर भोजन कराता हूँ।

सेठ बने शिवजी डाँट खाकर चुपचाप अपने आसन पर जा बैठे।

सेठानी बनी पार्वती उनकी यह दशा देख बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोक पाईं।

लेक…
खीर में चीनी की जगह नमक भरा हुआ था और सब्जियों में चीनी भरी हुई थी। जैसे ही भोले बाबा ने रोटी का एक ग्रास तोड़कर मुँह में दिया, वे सी-सी करने लगे, क्योंकि रोटी में मिर्च ही मिर्च भरी थी।वे सी-सी करते हुए उल्टे पैर भाग आए और अपने आसन पर जा बैठे।

माँ पार्वती अपने स्वामी की यह हालत देखकर खिलखिलाकर हँस पड़ीं।

इससे पहले कि भोलेबाबा पार्वती जी के सामने कुछ सफाई दे पाते, भोला भगत ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करते हुए आ पहुँचा।

उसने भोग को रसोई में मिलाकर उसे पवित्र बना डाला और फिर सेठजी के सामने पत्तल परोसकर हाथ जोड़कर बोला…

सेठजी ! अब आप जी भरकर प्रसाद पाइए।

भोलेबाबा तो अभी-अभी भक्त की भक्ति से भी जोरदार उसके हाथ की बनी हुई रसोई चख चुके थे, अतः उसे जीमने की बात सुनकर उनके पसीने छूटने लगे।

कभी वे भोला का तो कभी पार्वती का मुख देखने लगते। भोला को सेठजी की ढील बर्दाश्त नहीं हुई और बोला, सेठजी ! अब क्या हो गया आपको ? अभी-अभी तो इतनी उतावली मचा रहे थे ?

अब क्यों नहीं जीमते ? आप जीमोगे, तभी तो माताजी भी प्रसाद ग्रहण करेंगीं और फिर मैं भी प्रसाद पाऊँगा।

भोला की ललकार सुनकर भोलेबाबा ने चुपचाप खीर का कुल्हड़ उठाया और सारी नमकीन खीर गटागट पी गए।

कुल्हड़ खाली होने की देर थी कि भोला ने उसे झट से भर दिया।

अपने प्रिय भक्त के हाथों परोसे हुए भोग में भगवान् को आज दुगना स्वाद आने लगा। भोला परोसता गया और भोलेबाबा पीते गए।

जगतमाता पार्वती भक्त और भगवान् दोनों के प्रेम को देख-देखकर मंत्रमुग्ध होती रहीं।

जब सारी रसोई समाप्त हो गई तो भगवान् ने एक जोर की डकार ली।

भोला को होश आया और बोला, वाह सेठजी वाह ! मैं ही बावला था, जो इतनी थोड़ी-सी रसोई बनाई।

मुझे पता होता कि आपको प्रसाद ग्रहण करने का इतना शौक है…
किंतु तभी भोला भक्त रुआँसा होकर बोला… सेठजी ! वह तो आपने ठीक किया। लेकिन माताजी तो भूखी ही रह गईं। ममतामयी पार्वती माँ से भोला का रुआँसा मुख देखा नहीं गया। उन्होंने बची हुई खीर की चार बूँदें अपने कंठ में टपका लीं।

भोलेबाबा द्वारा भोग लगाने से प्रसाद में अद्भुत अलौकिक स्वाद भर गया था।

ऐसी सुगंधित और मीठी खीर चखकर जगज्जननी आकंठ तृप्त हो गईं और उनके तृप्त होते ही सृष्टि का प्रत्येक प्राणी तृप्त हो गया।

भोला भगत बोला, सेठजी ! आपने और माताजी ने प्रसाद ग्रहण कर लिया, इससे मुझे अत्यंत संतोष हुआ है।

समझ लीजिए कि आप दोनों द्वारा प्रसाद ग्रहण करने से मेरा भी पेट भर गया।

मेरी तो वैसे भी महीने में चार-चार एकादशी हो जाती हैं। किंतु मैं भी एक दाना ले ही लेता हूँ, जिससे कि भोलेबाबा के प्रसाद का अनादर न हो।

यह कहकर जैसे ही भोला ने खीर के पात्र में लगा चावल का एक दाना उठाकर अपने कंठ में डाला…
उसकी जन्म जन्मान्तर की भूख-प्यास मिट गई और समस्त वासनाओं और इच्छाओं की तृप्ति हो गई।

उसके ज्ञान के नेत्र खुल गए और उसने देखा कि उसके सम्मुख त्रिलोकीनाथ भगवान् शंकर और जगजननी माँ पार्वती आशीर्वाद की मुद्रा में मुस्कराते हुए खड़े हैं।

भोला दौड़कर उनके चरणों में लोट गया। लोटता गया, लोटता गया.. और उन्हीं में समा गया।

!! हर हर महादेव , जय शिव शंभू !!

 

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