कृष्ण जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में देश भर में मनाए जाने वाले सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। उन्हें भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है और पूरे भारत में उनकी पूजा की जाती है। इस दिन को जन्माष्टमी, कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी, अष्टमी रोहिणी, श्रीकृष्ण जयंती और श्री जयंती के नाम से भी जाना जाता है।
इस वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी 26 अगस्त, सोमवार को मनाई जाएगी। यह दिन कृष्ण पक्ष की अष्टमी या भाद्रपद महीने के आठवें दिन पड़ता है। ज्योतिष पंचांग के मुताबिक भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ 26 अगस्त, सुबह 3 बजकर 41 मिनट से होगा जो 27 अगस्त, सुबह 2 बजकर 21 मिनट पर समाप्त होगी।
बांके बिहारी मंदिर में होगी विशेष आरती
विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव 27 अगस्त को मनाया जाएगा। बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी के दिन ही बांके बिहारी की प्रमुख मंगला आरती होती है। 27 अगस्त को भगवान का मंदिर प्रतिदिन की भांति ही खुलेगा। शाम को आरती के बाद रात में भगवान का अभिषेक होगा। इसके बाद प्रभु बांके बिहारी की मंगला आरती होगी, जो साल में एक बार ही होती है। इस बार प्रशासन द्वारा इस आरती में 600 लोगों के लिए दर्शन करने की व्यवस्था की गई है।
श्रीकृष्ण का 5251वां जन्मोत्सव
श्रीकृष्ण जन्म स्थान के सचिव कपिल शर्मा ने बताया कि यह श्रीकृष्ण का 5251वां जन्मोत्सव है तो इस बार कुछ न कुछ खास जरूर होगा। इस बार जन्माष्टमी का पर्व बड़ी ही भव्यता और दिव्यता के साथ मनाने की योजना है। यहां भगवान हर बार की तरह इस साल भी सुबह की मंगल आरती से लेकर रात्रि जन्म अभिषेक तक भक्तों को दर्शन देंगे। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का मुख्य आयोजन उनकी जन्मस्थली मथुरा के जन्म स्थान पर होगा। यहां जन्माष्टमी 26 अगस्त को मनाई जाएगी। मध्य रात्रि को श्रीकृष्ण जन्म स्थान के मंदिर परिसर में भगवान का पंचामृत अभिषेक होगा।
कृष्ण जन्माष्टमी तिथि –
ज्योतिष पंचांग के मुताबिक भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ 26 अगस्त, सुबह 3 बजकर 41 मिनट से होगा जो 27 अगस्त, सुबह 2 बजकर 21 मिनट पर समाप्त होगी।
जन्माष्टमी पर पूजा का शुभ मुहूर्त –
पंचांग के अनुसार सुबह 5 बजकर 55 मिनट से 7 बजकर 36 मिनट तक अमृत चौघड़िया रहने वाला है। जो पूजा के लिए शुभ समय है। वहीं इसके बाद अमृत चौघड़िया पूजन का मुहूर्त 3 बजकर 36 मिनट 6 बजकर 48 मिनट तक है। साथ ही निशीथ काल में भी आप पूजा कर सकते हैं, जो रात में 12 बजकर 1 मिनट से 11 बजकर 44 मिनट तक है।
यह त्योहार भारतीय संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण है और देश के विभिन्न हिस्सों में इसे भिन्न-भिन्न तरीके से मनाने की परंपरा है। यह एक महत्वपूर्ण त्योहार है, विशेषकर हिन्दू धर्म की वैष्णव परम्परा में। भागवत पुराण (जैसे रास लीला वा कृष्ण लीला) के अनुसार कृष्ण के जीवन के नृत्य-नाटक की परम्परा, कृष्ण के जन्म के समय मध्यरात्रि में भक्ति गायन, उपवास (व्रत), रात्रि जागरण (रात्रि जागरण), और एक त्योहार (महोत्सव) अगले दिन जन्माष्टमी समारोह का एक भाग हैं। यह मणिपुर, असम, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तथा भारत के अन्य सभी राज्यों में पाए जाने वाले प्रमुख वैष्णव और निर्सांप्रदायिक समुदायों के साथ विशेष रूप से मथुरा और वृंदावन में मनाया जाता है ।
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन, भक्त आधी रात के आसपास निशिता पूजा करते हैं। आधी रात को उनके जन्म के बाद भक्त मूर्तियों को कृष्ण का पसंदीदा माखन (सफेद मक्खन), दूध और दही चढ़ाते हैं। चूँकि भगवान कृष्ण का जन्म आधी रात को हुआ था, इसलिए उनकी पूजा निशिता काल में की जाती है। कई राज्यों में दही हांडी का भी आयोजन किया जाता है।
जन्माष्टमी का भोग
भगवान लड्डू गोपाल को माखन मिश्री का भोग बहुत पसंद है। इस वजह से जन्माष्टमी वाले दिन बाल श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री का भोग लगाएं। इसके अलावा आप केसर वाला घेवर, पेड़ा, मखने की खीर, रबड़ी, मोहनभोग, रसगुल्ला, लड्डू आदि का भोग लगा सकते हैं।
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