चैत्र नवरात्र: भगवती की शक्ति से उत्पन्न हुए स्‍कन्‍द की माता होने से वे स्कन्‍दमाता कहलाती हैं – Team DA Exclusive

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म.प्र.(भोपाल): श्री दुर्गासप्तशती को स्वयं की बुद्धि और श्रद्धा से समझने के लिए पूर्वजन्म के संस्कार के साथ जीवन व्‍यापी ऐसी साधना की आवश्यकता है जिसके अनुसार तमस्, रजस् और सत का गुणातीत अवस्था में विलय होता है। वास्तव में यह एक ऐसा पावन मंगलमयी तथा आनंदानुभूति को प्रकट करने वाला ग्रंथ है जिसमें कृपा प्राप्त हो जाने पर अन्‍त:करण की आसुरी प्रवृत्तियों का विनाश होता है, समानान्‍तर ही दैवीय शक्तियों का अन्‍त:करण में सहज ही उदय भी हो जाता है। यही अवस्था धीरे-धीरे बाहरी स्‍तर पर भी निर्मित हो बढ़ते जाती है बशर्ते मां से पुत्रवत्-पुत्रीवत् आस्था के अनुसार ही विनयी एवं प्रेममयी संबंध का आधार ही साधक रखें। जहां तक तमस्- रजस् और सत का गुणातीत अवस्था में विलय है तो साथ ही जागृत, स्वप्न सुषुप्ति इन तीनों अवस्थाओं से आगे तुरीयादशा का बोध होता है। स्थूल, सूक्ष्म और परावस्था में विलय होता है।

जगजन्‍नी की दया मात्र से प्राण के धर्म- भूख प्यास, शरीर के धर्म- जरा मरण और मन के धर्म- शोक मोह से मुक्ति मिलती है। श्री दुर्गासप्तशती के नियमानुसार पाठ से व्यक्ति की इच्छा, क्रिया और ज्ञान का इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति और ज्ञानशक्ति से आगे उस चेतनावास्था की ओर प्रस्थान होता है, जिस बिन्‍दु पर इन तीनों का मिलन होता है। इसमें साधना के उस सोपान का निर्देश है जहां मेटर, मेटर न रहकर एनर्जी में परिवर्तित होता है। व्यक्ति का जहां विराट में लय होता है। आवरण विक्षेप के रहस्य को जान लेने पर उस अखण्‍ड सत्ता से मिलन होता है जिसे श्रुति- यतो वाचो निवर्तन्‍ते अप्राप्‍य मनसा सह- कहकर विराम देती है।

पंचम भगवती दुर्गा स्कन्‍दमाता

छान्‍दोग्य श्रुति के अनुसार भगवती की शक्ति से उत्पन्न हुए सनत्‍कुमार का नाम स्कन्‍द है। उनकी माता होने से वह स्कंदमाता  माता कहलाती हैं।

स्‍मरण मंत्र

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्‍दमाता कहते हैं। स्कन्‍द का एक नाम कुमार कार्त्तिकेय भी है, इन्होंने देवशत्रु तारकासुर का वध किया था। इनकी माता होने के कारण दुर्गाजी का यह पांचवा स्वरूप स्कन्‍दमाता के नाम से विख्यात है। भगवती स्कन्‍दमाता की चार भुजाऐं  हैं। ये अपने दाहिने ओर की एक भुजा से कुमार कार्त्तिकेय को पकडकर गोद में बैढायी हैं और दूसरी भुजा से कमलपुष्प धारण की हैं। इनकी बायीं ओर की एक भुजा में वरमुद्रा तथा दूसरी में कमल सुशोभित है। इनके सिर पर सुन्‍दर स्वर्णमुकुट तथा कानों में स्‍वर्णाभूषण हैं। इनका वाहन सिंह है। नवरात्र के पांचवें दिन इनकी उपासना का विधान है। इनकी उपासना से भक्त की समस्त इच्छाऐं पूर्ण हो जाती है और उसके लिए मोक्ष का द्वार खुल जाता है।

माँ जगदंबा के चरण कमलों में समर्पित लेख का पांचवा पुष्प..  🌹🙏🏻

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