नवरात्र (तृतीय दिन): आह्लादकारी चंद्रमा जिनकी घण्‍टा में स्थित है, उन देवी का नाम चंद्रघण्‍टा है– DA Exclusive

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म.प्र.(भोपाल): श्री दुर्गासप्तशती अथवा दुर्गामहात्‍म्‍य तांत्रिक साधनामार्ग का प्रमुख ग्रन्‍थ है। इसका वर्णन मार्कण्‍डेय पुराण के अलावा इसका कथानक वराह पुराण, वामन पुराण, शिव पुराण, स्‍कन्‍धपुराण और देवी भागवत में भी आया है। इससे इसकी महत्‍ता का प्रतिपादन होता है। इसमें प्रायोगिक स्तर पर उस मार्ग का संकेत किया गया है जिससे व्यक्ति को उन जगन्‍माता की कृपा प्राप्त होती है जो सभी सांसारिक अभिष्ट पदार्थों को प्राप्त कराने वाली शक्ति हैं। महर्षि अरविन्‍द ने अपने तन्‍त्र संबंधी लेख में कहा है- The worship of the energy, The SHAKTI, as the sole effective force for all the attainment.
शाक्‍तोपासना का मूल तो ऋग्वेद के वागृम्‍भणी सूक्‍त में ही प्राप्त होता है जिसे देवीसूक्‍त कहा जाता है। रुद्रयामल तन्‍त्र में बताया गया है कि देवीमाहात्‍म्‍य अतिरहस्यपूर्ण और सभी सिद्धियों को देने वाला है। दुर्गामाहात्‍म्‍य अर्थ का शास्त्र है जिस प्रकार गीता मोक्ष का शास्‍त्र है और मनुस्मृति को मानव धर्मशास्त्र कहा गया है। अर्थशास्त्र से तात्पर्य यह है कि संसार में अर्थ पदार्थ कहे जाने वाले जो भी संग्रहणीय और अभिलषणीय हो सकते हैं, वे शक्ति की आराधना, जगदम्‍बा की उपासना करने से प्राप्त होते हैं, इसीलिए इस दुर्गामाहात्‍म्‍य को सर्वसिद्धिदम् कहा गया है। महर्षि अरविन्‍द ने तन्‍त्र संबंधी अपने विचार प्रकट कर लिखा है कि- शक्ति की आराधना निम्‍नतम स्तर से प्रारंभ करते हुए उच्चतम शिखर पर पहुंचने की विद्या है। अर्थ को समझकर और उसका स्मरण करते हुए ही चण्‍डी पाठ करने का विधान है।
तृतीय भगवती दुर्गा चंद्रघण्‍टा
आह्लादकारी चंद्रमा जिनकी घण्‍टा में स्थित है, उन देवी का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्री के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा का विधान है। देवी चंद्रघंटा युद्ध और शक्ति की देवी हैं। उनका स्वरूप शांति और सच्चाई का प्रतीक है। इनके सिर पर चाँद का आकार है और ये सिंह पर सवार हैं। इनकी पूजा से भक्तों को मानसिक शांति मिलती है।
स्‍मरण मंत्र
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
माँ दुर्गा का तीसरा स्वरूप चंद्रघण्‍टा के नाम से प्रसिद्ध है। इनके मस्तक पर चंद्रघण्‍टाकर चन्‍द्र सुशोभित होने के कारण इन्‍हें चंद्रघण्‍टा कहा जाता है। इनके दस हाथ हैं। इनके दाहिने ओर चार हाथ में अमय मुद्रा, धनुष, बाण तथा कमल सुशोभित है और पांचवा हाथ वक्षस्थित माला पर है। इनके बाऍं ओर के हाथों में कमण्‍डलु, वायुमुद्रा, खड्ग, गदा और त्रिशूल है। इनके कण्‍ठ में पुष्‍पहार, कानों में स्‍वर्णाभूषण तथा सिर पर स्वर्णमुकुट है। इनका वाहन सिंह है। इनकी आराधना नवरात्र के तीसरे दिन की जाती है। ये दुष्‍टों का दमन एवं विनाश करने के लिए सदैव तत्‍पर पर रहती हैं। अत: इनके आराधक सिंह की तरह पराक्रमी और सर्वत्र निर्भर हो जाते हैं। यह अपने भक्त को मुक्त और मुक्ति दोनों प्रदान करती हैं।
माँ जगदंबा के चरण कमलों में समर्पित लेख शृंखला का तृतीय पुष्प..🌹🙏🏻
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