श्रीमद्‌भगवद्‌गीता विपरीत परिस्थितियों में उत्साहवर्धन और निराशा में आशा का संचार करने वाला ग्रंथ है – राष्ट्रपति मुर्मू

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श्रीमद्भगवद्गीता विपरीत परिस्थितियों में उत्साहवर्धन और निराशा में आशा का संचार करने वाला ग्रंथ है - राष्ट्रपति मुर्मू
श्रीमद्भगवद्गीता विपरीत परिस्थितियों में उत्साहवर्धन और निराशा में आशा का संचार करने वाला ग्रंथ है - राष्ट्रपति मुर्मू Image Source: Twitter @mlkhattar

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव को संबोधित करते हुए कहा है कि श्रीमद्‌भगवद्‌गीता विपरीत परिस्थितियों में उत्साहवर्धन और निराशा में आशा का संचार करने वाला ग्रंथ है।

राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू  ने कहा कि – “इसे मैं भगवान श्रीकृष्ण का वरदान मानती हूं कि राष्ट्रपति के रूप में, हरियाणा की अपनी पहली यात्रा को, मुझे इस धर्म-क्षेत्र से आरंभ करने का अवसर प्राप्त हुआ है। हमारे स्वाधीनता संग्राम को दिशा देने वाले लोकमान्य तिलक और महात्मा गांधी जैसे महानायकों ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में गीता से मार्गदर्शन प्राप्त किया था। उन्होंने गीता पर अपनी-अपनी टीकाएं भी लिखी थीं। जिस तरह योग पूरे विश्व समुदाय को भारत की सौगात है उसी प्रकार योग-शास्त्र गीता भी पूरी मानवता को भारत-माता का आध्यात्मिक उपहार है। गीता पूरी मानवता के लिए एक जीवन-संहिता है, आध्यात्मिक दीप-स्तंभ है।”

उन्होंने आगे कहा कि – “हरियाणा के वीर जवानों, मेहनती किसानों और संघर्ष करने वाली बेटियों ने गीता के उपदेश को जीवन में ढालकर अपने-अपने कर्म-क्षेत्र में हरियाणा का और पूरे देश का गौरव बढ़ाया है। हरियाणा की बहनें और बेटियां भारत का तिरंगा अंतरराष्ट्रीय मंच पर लहरा रही हैं। मुझे हरियाणा की इन बहनों और बेटियों पर गर्व है।”

राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि – “केवल 700 श्लोकों की गीता में सभी वेदों का सारांश समाहित है। गीता, वेदान्त का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है। गीता एक ऐसी पुस्तक है जिसमें व्यावहारिक जीवन और अध्यात्म की सभी शंकाओं के समाधान सरलता से मिल जाते हैं। मैं अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव के आयोजन तथा जन-कल्याण की योजनाओं के शुभारंभ तथा शिलान्यास के लिए हरियाणा सरकार की सराहना करती हूं। उन्होंने आगे कहा कि – “श्रीमद्‌भगवद्‌गीता विपरीत परिस्थितियों में उत्साहवर्धन और निराशा में आशा का संचार करने वाला ग्रंथ है। यह जीवन-निर्माण करने वाला ग्रंथ है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी श्रीमद्‌भगवद्‌गीता को ‘गीता माता’ कहते थे। गांधीजी ने कहा था, “मुझे जन्म देने वाली माता तो चली गयी, पर संकट के समय गीता माता के पास जाना मैं सीख गया हूं।”

News Source: Twitter @rashtrapatibhvn

Image Source: Twitter @mlkhattar

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