मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, श्रीलंका ने मार्क्सवादी विचारधारा वाले अनुरा कुमारा दिसानायके को अपना नया राष्ट्रपति चुना है। देश के लोगों ने 55 वर्षीय दिसानायके के भ्रष्टाचार से लड़ने और दशकों के सबसे खराब वित्तीय संकट के बाद आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने के संकल्प पर भरोसा किया है। नए राष्ट्रपति सोमवार को शपथ ग्रहण करेंगे। वह देश के नौवें राष्ट्रपति होंगे। श्रीलंका के इतिहास में पहली बार दूसरे दौर की मतगणना से राष्ट्रपति चुनाव के विजेता का फैसला हुआ क्योंकि शीर्ष दो उम्मीदवार पहले दौर में अनिवार्य 50 प्रतिशत वोट हासिल करने में विफल रहे। राष्ट्रपति चुनाव में अपने कुछ प्रतिद्वंद्वियों की तरह दिसानायके का किसी राजनीतिक परिवार से जुड़ाव नहीं है। वह मार्क्सवादी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) पार्टी के व्यापक मोर्चे नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) के नेता हैं और उन्होंने अपने नजदीकी प्रतिद्वंदी सामगी जन बालवेगया (एसजेबी) पार्टी के साजिथ प्रेमदासा को पराजित किया। वर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे पहली दौर की मतगणना के बाद ही रेस से बाहर हो गए थे क्योंकि वह शीर्ष दो स्थान हासिल करने में विफल रहे। जेवीपी पार्टी चीन की समर्थक मानी जाती है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है। 26 महीने के कार्यकाल के बाद विक्रमसिंघे ने अपने भावुक विदाई संदेश में कहा कि वह अब अपने दुलारे बच्चे श्रीलंका को दिसानायके की देखभाल में सौंप रहे हैं। आर्थिक संकट के बाद 2022 में गोटाबाया राजपक्षे को सत्ता से हटाने के बाद श्रीलंका में यह पहले चुनाव थे।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इससे पहले शनिवार को हुए मतदान के बाद रविवार को हुई मतगणना के पहले दौर में जब कोई प्रत्याशी 50 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त नहीं कर सका तो चुनाव आयोग ने दूसरे दौर की मतगणना का आदेश दिया। पहले दौर की मतगणना में दिसानायके को 56 लाख या 42.31 प्रतिशत मत मिले जो 2019 में पिछले राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें मिले तीन प्रतिशत मतों से बहुत अधिक हैं। साजिथ प्रेमदासा 32.8 प्रतिशत मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे। विक्रमसिंघे को 22.9 लाख या 17.27 प्रतिशत मत मिले। दिसानायके श्रीलंका की किसी मार्क्सवादी पार्टी के ऐसे पहले नेता हैं जो देश के प्रमुख बने हैं। वह उत्तर-मध्य प्रांत के ग्रामीण थम्बुटेगामा के रहने वाले हैं और कोलंबो की उपनगरीय केलानिया यूनिवर्सिटी से विज्ञान में स्नातक हैं। उनकी पार्टी जेवीपी राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में हुए श्रीलंका समझौते के विरुद्ध थी, लेकिन इस वर्ष फरवरी में दिसानायके की भारत यात्रा एनपीपी के रुख में नई दिल्ली के प्रति बदलाव के रूप में देखी गई।
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