मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, आज संविधान हत्या दिवस है। यह दिन हमें उन घटनाओं की याद दिलाता है, जब 25 जून 1975 को संविधान का गला घोंटकर देश पर आपातकाल थोप दिया गया था। यह आपातकाल से पीड़ित प्रत्येक व्यक्ति को श्रद्धांजलि देने का दिन भी है।
1975 में आज ही के दिन तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आंतरिक अशांति के खतरे का हवाला देते हुए अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा की थी। आपातकाल की घोषणा बढ़ती राजनीतिक अशांति और न्यायिक घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में की गई थी, जिसने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सत्तारूढ़ नेतृत्व की वैधता को हिलाकर रख दिया था। कार्यपालिका को अत्याधिक शक्तियां प्राप्त हो गईं और राज्य प्राधिकरण को केंद्रीय नियंत्रण में ले लिया गया। घोषणा के बाद, संवैधानिक सुरक्षा उपायों को व्यवस्थित रूप से निलंबित कर दिया गया। अनुच्छेद 358 ने अनुच्छेद 19 के तहत सुरक्षा को निलंबित कर दिया, जिससे भाषण, अभिव्यक्ति, सभा और आंदोलन की स्वतंत्रता प्रभावित हुई। नागरिकों को निवारण के लिए अदालतों में जाने से रोक दिया गया। सभी समाचार पत्रों पर पूर्व-सेंसरशिप लगा दी गई। यहां तक कि वैधानिक निगरानी संस्था, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को भी समाप्त कर दिया गया।
आकाशवाणी से ‘मन की बात’ कार्यक्रम में अपने विचार साझा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि आपातकाल देश के इतिहास का सबसे काला धब्बा था, जब लोकतंत्र का समर्थन करने वालों पर अत्याचार किए गए।
आपातकाल के दौरान जेल में बंद रहे प्रख्यात पत्रकार राम बहादुर राय ने आकाशवाणी से बातचीत की और उस दौरान हुए अत्याचारों के बारे में बताया।
उस दौरान हुए संवैधानिक संशोधनों ने अदालतों को आपातकाल घोषित करने के राष्ट्रपति के फैसले पर सवाल उठाने से रोक दिया और प्रधानमंत्री तथा लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव को न्यायिक जांच से बाहर कर दिया।
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News & Image Source: newsonair.gov.in