मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार,उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों के हजारों जूनियर शिक्षकों को राहत देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरुवार को शिक्षक-छात्र अनुपात बनाए रखने के लिए इस वर्ष जून में लाई गई सरकार की स्थानांतरण नीति को रद्द कर दिया। हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने 26 जून, 2024 को जारी सरकारी आदेश के प्रासंगिक प्रावधानों को “मनमाना और भेदभावपूर्ण” करार देते हुए रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति मनीष माथुर की पीठ ने पुष्कर सिंह चंदेल सहित जूनियर शिक्षकों द्वारा अलग-अलग दायर 21 रिट याचिकाओं को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि इस नीति के तहत केवल जूनियर शिक्षकों का ही तबादला किया जाता है, जबकि वरिष्ठ या पुराने शिक्षक अपने विद्यालयों में ही बने रहते हैं।
जानकारी के लिए बता दें कि, याचिकाकर्ताओं ने 26 जून के सरकारी आदेश और उसके बाद बेसिक शिक्षा विभाग के 28 जून के परिपत्र के खंड 3, 7, 8 और 9 को चुनौती देते हुए दलील दी थी कि उक्त प्रावधान समानता के मौलिक अधिकार के साथ-साथ शिक्षा के अधिकार अधिनियम के भी विपरीत हैं। विभिन्न याचिकाकर्ताओं की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता एच जी एस परिहार, यू एन मिश्रा और सुदीप सेठ ने संयुक्त रूप से तर्क दिया कि उपरोक्त प्रावधानों के अनुपालन में, शिक्षक-छात्र अनुपात को बनाए रखने के लिए केवल उस शिक्षक को ट्रांसफर किया जाता है, जिसे बाद में प्राइमरी स्कूल में नियुक्त किया जाता है। इसमें कहा गया कि ट्रांसफर के बाद जब ऐसे टीचर को नए प्राइमरी स्कूल में नियुक्त किया जाता है, तो वहां भी उसकी सेवा अवधि सबसे कम होने के कारण शिक्षक-छात्र अनुपात बनाए रखने के लिए यदि दोबारा किसी शिक्षक को स्थानांतरित करने की आवश्यकता होती है, तो नवनियुक्त शिक्षक को ही ट्रांसफर किया जाता है। यह भी तर्क दिया गया कि उक्त नीति शिक्षकों की सेवा नियमों के विरुद्ध है।
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