चैत्र नवरात्र: उस आदिशक्ति मां की स्‍फुरणा से संसार का कण-कण स्‍पन्‍दन करता है- Team DA Exclusive

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म.प्र.(भोपाल): अणु में व्याप्त, सबमें क्रियाशील, सबकी प्रेरिका शक्ति, जिसे कोई प्रकृति का स्वभाव कहना चाहे तो भी उस गतिशक्ति की-क्रियाशक्ति की ही वंदना है। जिसकी स्‍फुरणा से संसार का कण-कण स्पंदन करता है, जिसके कारण जडचेतन में लक्ष्यालक्ष्यस्वरूपा की परिणमन क्रिया चल रही है। वही शक्ति मातृशक्ति के रूप में सर्वश्रेष्‍ठ पूजनीय है। उसे प्राचीनतम साहित्य में मातृरूप से मानने का कारण केवल यह है कि बालक का, जन्म के समय सबसे पहले परिचय माता से ही होता है। उसके लिए सबसे सुलभ आश्रय, धारणास्थल-विपत्ति से रक्षा का स्थल, माता की गोदी ही होती है। माता ही उसकी पुकार को सबसे पहले सुनती है, वही उसके लिए तत्काल उन्‍मुख होती है। पवित्रतम्, मातृशक्ति को प्रत्यक्ष महसूस करने का मूलशास्‍त्र एवं स्थूल शरीर में दैवी शक्तियों को तत्काल जागृत करने का आश्रय ग्रंथ श्री दुर्गासप्तशती में ऋषि मार्कंण्‍डेयजी के पूछने पर ब्रह्मा जी ने बताया कि- देवी की 9 मूर्तियां है जिन्हें ‘‘नवदुर्गा’’ कहते हैं। उनके पृथक- पृथक नाम बतलाए जाते हैं। प्रथम नाम शैलपुत्री, दूसरा नाम ब्रह्मचारिणी, तीसरा चंद्रघंटा, चौथा कूष्माण्‍डा, पांचवा स्कन्‍दमाता, छठां कात्यायनी, सातवां कालरात्री, आठवां महागौरी और नवां सिद्धिदात्री है। यह सभी नाम सर्वज्ञ महात्मा वेद भगवान के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं।

प्रथम भगवती दुर्गा शैलपुत्री

गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वतीदेवी यद्यपि से सबकी अधीश्‍वरी हैं, तथापि हिमालय की तपस्या और प्रार्थना से प्रसन्न हो कृपापूर्वक उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुई यह बात पुराणों में प्रसिद्ध है।

स्‍मरण मंत्र

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।

मां दुर्गा के नौ स्वरूपों में प्रथम स्वरूप भगवती शैलपुत्री का है। पर्वत राज हिमवान् की पुत्री होने के कारण ही ये शैलपुत्री के नाम से प्रसिद्ध हुईं। वृषभारूढ़ भगवती शैलपुत्री अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल तथा बाएं हाथ में सुंदर कमल पुष्प धारण करती हैं। इनके सिर पर अर्धचंद्र और स्वर्ण मुकुट सुशोभित है। अपने पूर्व जन्म में इन्होंने दक्ष कन्या के रूप में अवतार लिया था, उस समय इनका नाम सती था। वहां भी इन्होंने अपनी कठिन तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न करके उन्हें पति रूप में प्राप्त किया था। पिता के यज्ञ में अपने पति की उपेक्षा देखकर इन्होंने योगाग्नि में स्वयं को भस्म कर दिया और दूसरे जन्म में हिमालय की पुत्री के रूप में उत्पन्न हुईं तथा पुनः भगवान शंकर की अर्धांगिनी बनीं। मनोवान्छित सिद्धि के लिए इनकी उपासना नवरात्रपूजन के प्रथम दिन की जाती हैं।

माँ जगदंबा के चरणों में समर्पित लेख का प्रथम पुष्प..🌹🙏🏻

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