चैत्र नवरात्र: तपस्या के द्वारा महान गौरवर्ण प्राप्त करने से ये महागौरी कहलाती हैं- Team DA Exclusive

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म.प्र.(भोपाल): अर्जुन अपने रथ की बागडोर भगवान के हाथों में देकर भी दुखी है, उसकी त्वचा जल रही है, शरीर कांप रहा है, उसका विषाद अन्‍नमय कोश तक सीमित है अर्थात शरीर तक सीमित है पर सुरथ और समाधि की चिंता श्री दुर्गासप्तशती में- प्राणमय, मनोमय और विज्ञानमय स्‍तर की है। सुरथ के लिए कहा गया है कि उसके मंत्रियों ने विद्रोह कर दिया है, वे उसे धोखा दे रहे हैं अत: वह अकेला ही अश्व पर सवार होकर गहन वन में चला जाता है जहां उसकी भेंट ऋषि से होती है। सुरथ के प्रज्ञा के क्षेत्र में पहुंचने पर ही उसे यह सब विचार प्रकट होते हैं। मन ही वह मन्‍त्री है जिसके वश में होकर जीवात्मा का अनुचर होना चाहिए पर व्यवहार में जीव मन की मनमानी के आगे घुटने टेक देता है, सुरथ के समान ही उसे मन के इस विद्रोह का पूर्वाभाष नहीं हो पाता। इन्द्रिया जिनके वशवर्ती होकर आचरण करना चाहिए वे अपने-अपने विषयों को यथार्थ रूप से प्रकाशित न कर अन्यथा करती हैं। सुरथ का यह इन्द्रिय रुपी अश्‍व पर गहन वन में प्रयाण ही उसके विवेक जागृत होने के कारण सम्‍भव हो सका है, यही वह स्थित है जिसके लिए योग कहता है- ऋतम्‍भरा तत्र प्रज्ञा। यह आत्मा की ही आत्म कल्याण पथ पर यात्रा है। आत्मा ही रथी है, शरीर ही रथ है, बुद्धि सारथी है, मन लगाम है और इन्द्रियां ही अश्व है। सुरथ का गहन वन में प्रवेश ही हृदयगुफा में अन्वेषण है। जहां जगती का कोलाहल शांत हो जाता है, वहां वासनाओं के हिंसक पशु शान्‍त भाव से विचरण करते हैं- अतः उसे प्रशान्‍तश्‍वापदाकीर्ण कहा गया है। मेधा ऋषि से मिलन- सुमेधस् होना उस जगज्‍जननी की कृपा से ही संभव हो पाता है, पर जो प्रयत्‍नशील होते हैं, उन्हीं पर यह कृपा होती है। यही कल्याण मार्ग के पथिक को स्वयं मेधा के समीप पहुंचाती है। यहां से श्री दुर्गासप्तशती का प्रारंभ होता है- जहां से यह यात्रा प्रारंभ होकर उसे मोक्ष के द्वारा और मन्‍वन्‍तराधिप बनाने के अधिपत्‍य तक पहुंचा देती है। श्री दुर्गासप्तशती मन्‍त्र-शास्त्र का ग्रन्‍थ है, उसमें एक-एक शब्द विशेष प्रयोजन से विशेष अर्थ-गूढ़ अर्थ को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त हुआ है।

आठवीं भगवती दुर्गा महागौरी

इन्होंने तपस्या के द्वारा महान गौरवर्ण प्राप्त किया था, अतः ये महागौरी कहलायीं।

स्‍मरण मंत्र

श्वेत वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥

मां दुर्गा के आठवें स्वरूप का नाम महागौरी है। इनके शरीर का वर्ण पूर्णतः गौर तथा वस्त्राभूषण आदि भी श्वेत है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है। इनकी चार भुजाऐं हैं तथा इनका वाहन वृषभ है। इनकी दायीं ओर की दो भुजाओं में वरमुद्रा तथा त्रिशूल और बायीं ओर की दो भुजाओं में डमरू तथा अभय मुद्रा सुशोभित है। नवरात्र के आठवें दिन इनकी उपासना का विधान है। इनकी उपासना अमोघ तथा सद्य: फलदायी है। इनकी उपासना से भक्तों का सर्वविध कल्याण होता है और उनके पूर्व संचित पापों का विनाश होता है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। पुराणों में इनकी अनन्‍त महिमा का वर्णन मिलता है। जो व्यक्ति सदैव मां गौरी की अनन्य भाव से भक्ति करता है, उसके सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं।

माँ जगदंबा के चरण कमलों में समर्पित लेख का आठवां पुष्प.. 🌹🙏🏻

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