दिल्ली चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी विधायक नरेश बाल्यान को झटका, कोर्ट ने जमानत याचिका खारिज की

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दिल्ली चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी विधायक नरेश बाल्यान को झटका, कोर्ट ने जमानत याचिका खारिज की

मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, राउज एवेन्यू स्थित विशेष न्यायाधीश की अदालत ने महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत एक मामले में आम आदमी पार्टी के विधायक नरेश बाल्यान की जमानत याचिका खारिज कर दी है। विशेष न्यायाधीश कावेरी बावेजा ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आवेदन खारिज कर दिया। वहीं, अदालत ने बाल्यान की दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल के लिए दस्तावेज पर दस्तखत करने की मांग वाली याचिका पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया।

मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने बाल्यान की जमानत याचिका का विरोध करते हुए दलील दी थी कि वह संगठित अपराध सिंडिकेट में सहायक था। पुलिस की ओर से पेश विशेष लोक अभियोजक अखंड प्रताप सिंह ने दलील दी कि अगर जमानत दी गई तो बाल्यान गवाहों को प्रभावित कर सकता है, सुबूत नष्ट कर सकता है और चल रही जांच में बाधा डाल सकता है। उन्होंने दलील दी कि गवाहों ने कुबूल किया है कि आरोपित नरेश बाल्यान कपिल सांगवान के संगठित अपराध सिंडिकेट में सहयोगी है और उसने अपराध करने के बाद सिंडिकेट के एक सदस्य को गिरफ्तारी से बचने के लिए खर्च के लिए पैसे मुहैया कराए हैं। उन्होंने दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में सिंडिकेट सदस्यों के खिलाफ दर्ज 16 प्राथमिकी का हवाला दिया और दावा किया कि इसने भारी मात्रा में अवैध संपत्ति अर्जित की है। न्यायाधीश ने नौ जनवरी को आरोपित और अभियोजन पक्ष की दलीलें सुनने के बाद आवेदन पर आदेश सुरक्षित रख लिया था। बाल्यान को चार दिसंबर को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था। बता दें इससे पहले की सुनवाई में नरेश बाल्यान की ओर से पेश अधिवक्ता एमएस खान ने तर्क दिया गया कि प्राथमिकी में कोई नया अपराध नहीं है। संगठित अपराध आईपीसी के तहत अन्य अपराधों से अलग है। अधिवक्ता ने तर्क दिया कि मकोका के तहत प्राथमिकी संगठित अपराध के खिलाफ नहीं है, यह कपिल सांगवान के नेतृत्व वाले संगठित अपराध सिंडिकेट के खिलाफ है। अधिवक्ता ने तर्क दिया गया कि गैरकानूनी गतिविधियां, संगठित अपराध और संगठित अपराध सिंडिकेट जारी हैं। अधिवक्ता ने दलील दी कि पुलिस एक वीडियो क्लिप पर भरोसा कर रही है। उनका दावा है कि यह वीडियो क्लिप उन्हें अगस्त 2024 में इस प्राथमिकी के दर्ज होने के बाद मिली थी, पुलिस ने अदालत को गुमराह किया है और तथ्य छिपाए हैं।

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