मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, “स्वतंत्रता-पूर्व भारत में संसदीय व्यवस्थाएं और स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सदस्यों की भूमिका” विषय पर दिल्ली विधान सभा परिसर में बृहस्पवितार को एक विशेष शैक्षणिक संगोष्ठी का आयोजन किया जाएगा। इस संगोष्ठी का उद्देश्य 1911 से 1946 तक विदेशी शासन काल भारत में संसदीय संस्थाओं के विकास की पुनर्समीक्षा करना तथा उन भारतीय विधायकों के योगदान को रेखांकित करना है जिन्होंने राष्ट्र की स्वतंत्रता की दिशा में विधायी मंचों का उपयोग किया। संगोष्ठी के अंतर्गत दो शैक्षणिक सत्र आयोजित किए जाएंगे, जिनका संचालन दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर करेंगे। पहले सत्र में ‘इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में राष्ट्रवादी नेताओं की भूमिका’, ‘पब्लिक सेफ्टी बिल और विधायी स्वायत्तता’ तथा ‘पंडित मदन मोहन मालवीय की केंद्रीय विधानमंडल में भूमिका’ विषयों पर चर्चा होगी।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, दूसरे सत्र में ‘दिल्ली विश्वविद्यालय के निर्माण में केंद्रीय विधान सभा की भूमिका’ , ‘अस्थायी औपनिवेशिक राजधानी के गठन की प्रक्रिया’ और ‘आधुनिक भारत के निर्माण में पंडित मदन मोहन मालवीय का योगदान’ विषयों पर प्रस्तुतियाँ होंगी इस अवसर पर विधान सभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि यह ऐतिहासिक चिंतन, आज के लोकतांत्रिक मूल्यों और संसदीय संस्कृति में भी प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता से पहले के भारतीय विधायकों द्वारा प्रदर्शित नैतिक नेतृत्व, संवैधानिक तरीकों में विश्वास और सार्वजनिक सेवा का भाव आज भी प्रेरणादायक है। इस संगोष्ठी के माध्यम से दिल्ली विधान सभा, भारत की संवैधानिक परंपरा की विरासत को संरक्षित रखने और उन महान व्यक्तित्वों को सम्मानित करने के अपने संकल्प को दोहराती है, जिन्होंने भारत के संसदीय लोकतंत्र की नींव रखी।
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