पाञ्चजन्य: जब श्रीकृष्ण ने गुरु आज्ञा से इस शंख को बजाकर नये युग का प्रारंभ किया

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पाञ्चजन्य शंख के रहस्य के बारे में आज हम आपको कुछ जानकारी देने का प्रयास करेंगे। विदित हो कि महाभारत में श्रीकृष्ण के पास पाञ्चजन्य, अर्जुन के पास देवदत्त, युधिष्ठिर के पास अनंतविजय, भीष्म के पास पोंड्रिक, नकुल के पास सुघोष, सहदेव के पास मणिपुष्पक नामक शंख थे। इन सभी के शंखों का महत्व और शक्ति अलग-अलग थी।
इन शंखों की शक्ति और चमत्कारों का वर्णन महाभारत और पुराणों में मिलता है। शंख को विजय, समृद्धि, सुख, शांति, यश, कीर्ति और लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शंख नाद का प्रतीक है। शंख ध्वनि शुभ मानी गई है। हालांकि प्राकृतिक रूप से शंख कई प्रकार के होते हैं।
शंखों के 3 प्रमुख प्रकार हैं-
1. दक्षिणावृत्ति शंख,
2. मध्यावृत्ति शंख तथा
3. वामावृत्ति शंख।
इन शंखों के कई उप प्रकार भी होते हैं।
पाञ्चजन्य का रहस्य: – पाञ्चजन्य बहुत ही दुर्लभ शंख है। समुद्र मंथन के दौरान इस पाञ्चजन्य शंख की उत्पत्ति हुई थी। समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से 6वां रत्न शंख था।
एक समय की बात है- श्रीकृष्ण के गुरु के पुत्र को एक बार एक दैत्य उठा ले गया। उसी गुरु पुत्र को लेने के लिए वे दैत्य नगरी गए। वहां उन्होंने देखा कि एक शंख में दैत्य सोया है। उन्होंने दैत्य को मारकर शंख को अपने पास रखा और फिर जब उन्हें पता चला कि उनका गुरु पुत्र तो यमपुरी चला गया है तो वे भी यमपुरी चले गए। वहां यमदूतों ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया, तब उन्होंने शंख का नाद किया जिसके चलते यमलोक हिलने लगा।
फिर यमराज ने खुद आकर श्रीकृष्ण को उनके गुरु के पुत्र की आत्मा को लौटा दिया। भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और गुरु पुत्र के साथ पुन: धरती पर लौट आए और उन्होंने अपने गुरु पुत्र के साथ ही पाञ्चजन्य शंख को भी गुरु को समक्ष प्रस्तुत कर दिया।
गुरु ने पाञ्चजन्य को पुन: श्रीकृष्ण को देते हुए कहा कि यह तुम्हारे लिए ही है। तब गुरु की आज्ञा से उन्होंने इस शंख का नाद कर पुराने युग की समाप्ति और नए युग का प्रारंभ किया।
भगवान श्रीकृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था जिसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी। कहते हैं कि महाभारत युद्ध में अपनी ध्वनि से पांडव सेना में उत्साह का संचार करने वाले इस शंख की ध्वनि से संपूर्ण युद्ध भूमि में शत्रु सेना में भय व्याप्त हो जाता था।
महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण अपने पाञ्चजन्य शंख से पांडव सेना में उत्साह का संचार ही नहीं करते थे, बल्कि इससे कौरवों की सेना में भय व्याप्त हो जाता था। इसकी ध्वनि सिंह गर्जना से भी कहीं ज्यादा भयानक थी। इस शंख को विजय व यश का प्रतीक माना जाता है।
कहते हैं इसमें 5 अंगुलियों की आकृति होती है। हालांकि पाञ्चजन्य शंख अब भी मिलते हैं लेकिन वे सभी चमत्कारिक नहीं हैं। इन्हें घर को वास्तुदोषों से मुक्त रखने के लिए स्थापित किया जाता है। यह राहु और केतु के दुष्प्रभावों को भी कम करता है। कहते हैं कि यह पाञ्चजन्य शंख आज भी कहीं मौजूद है।
मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के बाद अपना पाञ्चजन्य शंख पराशर ऋषि के तीर्थ में रखा था। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि श्रीकृष्ण का यह शंख आदि बद्री में सुरक्षित रखा है। बताया गया है कि इसकी बनावट विशेष प्रकार की थी। इसमें फूंक एक तरफ से मारी जाती थी लेकिन आवाज 5 जगहों से निकलती थी।
राधे-राधे
जय श्रीकृष्ण🙏🙏

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