DailyAawaz Exclusive Story: एक थे ग्वारिया बाबा। वृन्दावन में ही रहते थे। बिहारी जी को अपना यार कहते थे। सिर्फ कहते नहीं, मानते भी थे। नियम था बिहारी जी को नित्य सायं शयन करवाने जाते थे। एक बार शयन आरती करवाने जा रहे थे। बिहारी जी की गली में बढ़िया मोदक बन रहे थे। अच्छी खुशबू आ रही थी। चार मोदक मांग लिए बिहारी जी के लिए! वृन्दावन के लोग बिहारी जी के भक्तों का बड़ा आदर करते है। उन्होंने मना नहीं किया। एक डोने में बांध दिये साथ में, बाबा भीतर गए तो बिहारी जी के भोग के पट आ चुके थे।
ग्वारिया बाबा जी ने वही बैठकर अपना कम्बल बिछाया और उस पर बैठकर अपने मन के भाव में खो गए। वहाँ बिहारी जी की आरती का समय हुआ तो श्री गौसाई जी बड़ा प्रयास कर रहे हैं लेकिन ठाकुर जी के मंदिर का पट नहीं खुल रहा। बड़े हैरान इधर उधर देख रहें। एक संत कोने में बैठे सब दृश्य आरंभ से देख रहें थे। पुजारी जी ने लाचारी से देखा तो संत बोले उधर ग्वारिया बाबा बैठे हैं उनसे पूछो वो बता देंगे, ग्वारिया बाबा हंस दिए। कहते जय जय ! जब आप भोग के लिए दरवाजा खोल रहे थे। तब बिहारी जी मेरे पास मोदक खा रहे थे। अभी मैंने उनका मुँह भी नहीं धुलाया था की आपने आवाज दे दी। उनका मुँह साफ कर देना। जाईये उनका मुख तो धुला दीजिये उनके मुख पर झूठन लगी है। गौसाईं जी ने स्नान किया मंदिर में गए तो देखा की ठाकुर जी के मुख पर तो मोदक का झूठन लगी थी…
पुजारी हतप्रभ रह गए…
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