मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, बैंकों के सहयोग के बिना कोई अर्थव्यवस्था मजबूत हो ही नहीं सकती। आर्थिक संभावनाओं का आकलन करने के साथ बैंक ऋण आदि के रूप में जो सहयोग करते हैं, उसका लेखा-जोखा राज्य-स्तरीय बैंकर्स समिति रखती है। इस समिति की बैठक प्रति तिमाही होती है। सोमवार को एक साथ तीन तिमाही (90वीं से 92वीं) की बैठक होनी है। नाबार्ड के राज्य फोकस पेपर को लांच करते हुए उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री सम्राट चौधरी द्वारा बैंकों के प्रति जताए गए क्षोभ से स्पष्ट होता है कि बिहार में साख-जमा अनुपात (सीडी रेशियो) सरकार की अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। अभी यह 60 प्रतिशत से कम ही है, जबकि सरकार को बैंकों से इससे अधिक की अपेक्षा थी। एसएलबीसी राज्य में बैंकरों की सर्वोच्च संस्था है। प्रति तिमाही इसकी बैठक की परंपरा रही है। संस्थागत ऋण की समीक्षा के अलावा तिमाही बैठकों में राज्य के आर्थिक विकास से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होती है। वित्त विभाग के नेतृत्व में संबंधित विभागों के साथ होने वाली उस चर्चा में बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वर्ष 2023-24 के अंतिम तिमाही की बैठक 2024 के जून में हुई थी। वह 88वीं और 89वीं एसएलबीसी की संयुक्त बैठक थी। उसमें वर्ष 2023-24 के दिसंबर और मार्च तिमाही के लक्ष्य और लक्ष्य प्राप्ति पर चर्चा हुई थी। सम्राट चौधरी ने तब भी बैंकों को लक्ष्य के अनुरूप प्रदर्शन की चेतावनी दी थी। बैंकों ने भरसक प्रयास भी किया, लेकिन एनपीए की आशंका में वे कई अवसरों पर संकोच कर गए। व्यावसायिक बैंकों द्वारा ऋण देने में आनाकानी के कारण ही राज्य में एनबीएफसी और एमएफआइ लेंडिंग बढ़ रही है। कृषि व सहवर्ती क्षेत्र में बैंकों का ऋण कम हो रहा है और एनबीएफसी और एमएफआइ की उपस्थिति बढ़ रही है। उनका खाता भी एनपीए नहीं हो रहा। ऐसे में बैंकों को यह विचार करने की सलाह दी जाएगी कि उनके प्रयास में कहां और क्या कमी रह जा रही। इस कमी का एक उदाहरण किसान क्रेडिट कार्ड है। बिहार में 1.61 करोड़ किसान हैं, लेकिन सक्रिय रूप से किसान क्रेडिट कार्ड धारकों की संख्या मात्र 13 लाख है। चालू वित्तीय वर्ष में अभी तक 5.50 लाख किसान ही केसीसी से लेन-देन किए। यह स्थिति तब है, जबकि केंद्र सरकार ने केसीसी की अधिसीमा को तीन लाख से बढ़ाकर पांच लाख कर दी है।
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