मप्र (भोपाल): प्रदेश की राजधानी भोपाल में नवाबी शासनकाल के पूर्व बनी लगभग 12 बावड़ियों एवं कई कुऔं का अस्तित्व केवल नाम मात्र का रह गया है| उक़्त संदर्भ में समाजसेवी प्रमोद नेमा ने बताया कि, “यह बावड़ियां अतिक्रमण की भेंट चढ़ गई है जिसके कारण इनका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है|” उन्होंने इस विषय पर यह भी कहा कि, “खास बात तो यह है कि नगर निगम के पास इन बावड़ियों का कोई रिकॉर्ड ही नहीं है|”
समाजसेवी प्रमोद नेमा के अनुसार, “भोपाल रेलवे स्टेशन से लेकर भानपुर तक बाग बगीचे नवाबी शासन काल में हुआ करते थे जिनके पानी का साधन यही बावड़ियां थीं| स्टेशन क्षेत्र सहित अन्य जगहों पर 25- 30 वर्ष पूर्व तक घरों के नलों में इन्हीं बावड़ियों से पानी सप्लाई किया जाता था| अपना अस्तित्व खो चुकी बावड़ियों में स्टेशन क्षेत्र से लगे हुए महामाई के बाग की बावड़ी, कांटे वाले बंगले की बावड़ी, रानी जी के बाग की बावड़ी, बाग उमराव दुल्हा की बावड़ी, ललरिया बाग की बावड़ी, ललरिया के पास ही बनी फूटी बावड़ी, काजी कैंप में बनी गणगौर की बावड़ी, बेरसिया रोड स्थित चंदन दर्जी की बावड़ी और बड़े बाग में स्थित बावड़ी भोपाल में हुआ करती थी| बड़े बाग को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी बावड़ियों में अतिक्रमण हो गए हैं जिससे इनका अस्तित्व ही समाप्ति की ओर है|”
उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि, “भोपाल नगर पालिका निगम द्वारा राजधानी के शाहजहानाबाद, हवामहल, ईदगाह हिल्स, बुधवारा, इतवारा , चौक, इब्राहिमपुरा, बस स्टैंड, भोपाल टॉकीज आदि क्षेत्रों में स्थित घरों के नलों में बड़े तालाब से पानी सप्लाई किया जाता था बाकी सभी सभी जगह पीने का पानी इन्हीं बावड़ियों से सप्लाई होता था लेकिन धीरे-धीरे इनका अस्तित्व समाप्त हो गया और बड़े तालाब के बाद कोलार और अब नर्मदा जल सप्लाई होता है| इन बावड़ियों का संरक्षण किया होता तो आज भी आधे पुराने शहर की पानी की सप्लाई इन बावड़ियों से की जा सकती थी|”
इस संदर्भ में नगर निगम यदि अभी भी गंभीरता से विश्लेषण कर वस्तुस्थिति पर आंकलन करे तो सार्थक परिणाम सामने आ सकते हैं और साथ ही पुरानी विरासत का प्रकटीकरण के साथ संरक्षण भी हो सकता है।
Image Source: Social Media
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