भोपाल: राष्ट्रपति मुर्मू ने भारत की लोक एवं जनजातीय अभिव्यक्तियों के राष्ट्रीय उत्सव “उत्कर्ष” और “उन्मेष” कार्यक्रम का किया शुभारंभ

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भोपाल: राष्ट्रपति मुर्मू ने भारत की लोक एवं जनजातीय अभिव्यक्तियों के राष्ट्रीय उत्सव
Image Source: @CMMadhyaPradesh

मप्र: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज रवींद्र भवन, भोपाल में मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगु भाई पटेल तथा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उपस्थिति में भारत की लोक एवं जनजातीय अभिव्यक्तियों के राष्ट्रीय उत्सव “उत्कर्ष” और “उन्मेष” कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्जवलन कर किया। “उत्कर्ष” और “उन्मेष” महोत्सव के उद्घाटन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने संबोधन में कहा कि – “राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के बाद अब तक मेरी सबसे अधिक यात्राएं मध्य प्रदेश में हुई हैं। संयोग से आज मध्य प्रदेश की यह मेरी पाँचवी यात्रा है। आप सबके आतिथ्य के लिए मैं मध्य प्रदेश के आठ करोड़ निवासियों को धन्यवाद देती हूं।”

राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि – “हमारी परंपरा में, ‘यत्र विश्वम् भवति-एक नीडम्’ की भावना प्राचीन काल से आधुनिक युग तक निरंतर व्यक्त होती रही है। राष्ट्र-प्रेम और विश्व-बंधुत्व इन दोनों आदर्शों का संगम हमारे देश की चिंतन धाराओं में सदैव दिखाई देता रहा है। साहित्यकार का सत्य इतिहासकारों के तथ्य से अधिक प्रामाणिक होता है। मानवता का वास्तविक इतिहास विश्व के महान साहित्य में ही मिलता है। साहित्य ने मानवता को आईना भी दिखाया है, बचाया भी है और आगे भी बढ़ाया है।”

उन्होंने कहा कि – “कई चुनौतियों का सामना कर रहे विश्व में, हमें विभिन्न संस्कृतियों और मान्यताओं के लोगों के बीच बेहतर समझ बनाने के लिए प्रभावी तरीके खोजने होंगे। हमारे स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों को साहित्य ने शक्ति प्रदान की। पूर्व में बंकिम-चन्द्र चट्टोपाध्याय से लेकर पश्चिम में झवेरचंद मेघाणी तक, तथा दक्षिण में सुब्रह्मण्य भारती से लेकर उत्तर में ज्ञानी हीरा सिंह ‘दर्द’ तक, देश के कोने-कोने में, अनेक रचनाकारों ने स्वाधीनता और पुनर्जागरण के आदर्शों को अभिव्यक्ति प्रदान की।”

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आगे कहा कि – “‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के ऐतिहासिक पड़ाव पर हमें यह विचार करना है कि क्या वर्तमान में हम ऐसा साहित्यिक उन्मेष देख रहे हैं जिसमें बड़ी संख्या में पाठकों की भागीदारी हो? सभी भारतीय भाषाओं की प्रमुख पुस्तकों का अन्य भाषाओं में अनुवाद होने से भारतीय साहित्य और अधिक समृद्ध हो सकेगा। जब भारत का जनजातीय समाज समुन्नत हो जाएगा तब भारत एक विकसित राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित हो जाएगा। हमारा सामूहिक प्रयास होना चाहिए कि अपनी संस्कृति, लोकाचार, रीति-रिवाज और प्राकृतिक परिवेश को सुरक्षित रखते हुए, हमारे जनजातीय समुदायों के भाई-बहन और युवा आधुनिक विकास में भागीदार बनें।”

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