मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, दक्षिण कोरिया में सत्तारूढ़ दल ने राष्ट्रपति यून सुक येओल के मार्शल ला लगाने के कृत्य की निंदा तो की लेकिन उन्हें सत्ताच्युत होने से फिलहाल बचा लिया। विपक्ष के लाए महाभियोग प्रस्ताव पर मतदान का सत्तारूढ़ पीपुल पावर पार्टी ने बहिष्कार किया जिसके कारण प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत न मिलने से गिर गया। 300 सदस्यों वाली संसद में प्रस्ताव को 195 सदस्यों का समर्थन मिला जबकि उसे पारित होने के लिए 200 सदस्यों का समर्थन चाहिए था। यून की पार्टी के तीन सदस्यों ने भी प्रस्ताव के समर्थन में मतदान किया। महाभियोग प्रस्ताव के पक्ष में मतदान न करने के लिए नागरिकों ने सत्तारूढ़ दल की कड़ी निंदा की है। इस बीच यून ने मार्शल ला लगाने के अपने कदम पर देश से माफी मांगी है। कहा है कि अपने राजनीतिक भविष्य के बारे में फैसला करने का अधिकार वह अपनी पार्टी पर छोड़ रहे हैं। विदित हो कि यून का राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल मई 2027 तक है।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, राष्ट्रपति यून ने मंगलवार को देश में मार्शल ला लगाकर पूरे विश्व को स्तब्ध कर दिया था। इसके बाद संसद और मंत्रिमंडल ने उसके खिलाफ प्रस्ताव पारित कर महज छह घंटे में मार्शल ला को निष्प्रभावी कर दिया था। लेकिन उसका देश और दुनिया में गलत संदेश गया था यून की अपनी पार्टी ने उन्हें देश के लिए खतरा करार दिया है। लेकिन यह भी कहा है कि राष्ट्रपति को महाभियोग के जरिये हटाकर वह देश की व्यवस्थाओं को पंगु नहीं बनाना चाहती है। इस विषय में वह विचार-विमर्श कर अपनी योजना की घोषणा करेगी। जबकि विपक्ष ने यून को लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया है। विदित हो कि दक्षिण कोरिया 1948 में गणतंत्र बनने के बाद 1980 तक राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहा। 32 वर्ष के दौरान देश में एक दर्जन से ज्यादा बार मार्शल लगाया गया था। दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ का फैसला एक नाटकीय घटनाक्रम की तरह था। मंगलवार की रात करीब 11 बजे राष्ट्रपति यून सुक योल ने टीवी पर अपना संबोधन शुरू किया। उन्होंने हमेशा की तरह विपक्ष पर सरकार को पंगु बनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि देश का विपक्ष उत्तर कोरिया के एजेंडे पर काम कर रहा है। इसके बाद योल ने देश में मार्शल लॉ लगाने की घोषणा कर दी। उन्होने इसे देश की सुरक्षा के लिए जरूरी बताया। मार्शल लॉ का एलान होते ही देश में लोग भड़क गए। विपक्ष ने सरकार को घेरते हुए फैसले की निंदा की और लोगों से सड़कों पर उतरने की अपील की। देखते ही देखते दक्षिण कोरिया की सड़कों पर हजारों लोग पहुंच गए।
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