DailyAawaz Exclusive Story: महाभारत के वन पर्व में यक्ष और युधिष्ठिर के बीच जो अतिरोचक संवाद हुआ है उसे जानने के बाद आप जरूर हैरान रह जाएंगे। आप भी अपने जीवन में कुछ प्रश्नों के उत्तर ढूंढ ही रहे होंगे। यह अध्यात्म, दर्शन और धर्म से जुड़े प्रश्न ही नहीं है, यह आपकी जिंदगी से जुड़े प्रश्न भी है।
एक दिन, जब पांडव जंगल में शिकार के लिए निकले थे, तो उन्हें प्यास लगी और वे थक गए। उस समय, एक ब्राह्मण दौड़ता हुआ उनके पास आया और कहा कि उसने अपनी पूजा के लिए कुछ पवित्र घास सूखने के लिए लटका रखी है। एक नर हिरण वहाँ से गुज़रा, घास उसके सींगों में फंस गई और वह घास लेकर जंगल में भाग गया। उसने पांडवों से विनती की, “कृपया, किसी तरह मेरे लिए यह पवित्र घास लाओ, क्योंकि यह मेरी पूजा का समय है। मैं यह पूजा नहीं छोड़ना चाहता। आप बहादुर क्षत्रिय माने जाते हैं; आपको मेरी मदद करनी चाहिए।”
युधिष्ठिर अपने भाइयों से हिरण की तलाश के लिए अलग-अलग दिशाओं में जाने को कहते हैं। उन्हें हिरण कहीं नहीं दिखता। एक समय पर, वे थक जाते हैं और प्यासे हो जाते हैं।
युधिष्ठिर नकुल से पानी की तलाश करने के लिए कहते हैं। एक समय पर, नकुल एक तालाब के पास पहुँचता है। जैसे ही नकुल पानी पीने वाला होता है, एक आवाज़ आती है, “मेरे सवालों के जवाब देने से पहले इस पानी को मत पीना।” नकुल इसे अनदेखा करता है, पानी पीता है, और मर जाता है। जब नकुल वापस नहीं आता है तो युधिष्ठिर सहदेव को उसकी तलाश करने के लिए भेजते हैं। सहदेव जैसे ही तालाब के पास आते हैं, एक आवाज कहती है, “रुको! मेरे सवालों के जवाब देने से पहले इस पानी को मत पीना।” सहदेव कहते हैं, “मुझे पहले अपनी प्यास बुझाने दो। फिर मैं तुम्हारे सवालों का जवाब दूंगा।” वह पानी पीते हैं और मर जाते हैं।
अब युधिष्ठिर को आभास होता है कि दोनों भाई खतरे में हैं, और वह भीम और अर्जुन से उन्हें ढूंढने के लिए कहते हैं। वे तालाब के पास आते हैं। जैसे ही वे इससे पानी पीने वाले होते हैं, एक आवाज कहती है, “रुको! मेरे सवालों के जवाब देने से पहले इस पानी को मत पीना।” अर्जुन कहते हैं, “तुम कौन हो? अपने आप को दिखाओ।” भीम कहते हैं, “छोड़ो अर्जुन। चलो पानी पीते हैं। जब भीम और अर्जुन भी वापस नहीं आते, तो युधिष्ठिर उनकी तलाश में निकल पड़ते हैं।आखिरकार, वे तालाब के पास पहुँचते हैं और अपने भाइयों को वहाँ मृत अवस्था में पड़े हुए देखते हैं। वे तालाब से पूछते हैं, “पानी! क्या तुम ही अपराधी हो? क्या तुमने ही मेरे भाइयों की जान ली है? मेरी भी जान ले लो!” एक आवाज़ आती है, “रुको! मेरे सवालों का जवाब दिए बिना पानी मत पीना।”
युधिष्ठिर पूछते हैं, “तुम कौन हो? तुम कहाँ हो? अपने आप को दिखाओ।” एक यक्ष प्रकट होता है और कहता है, “यह तालाब मेरा है। आपके भाई इसलिए मर गए क्योंकि उन्होंने मेरे सवालों का जवाब देने से पहले इसका पानी पी लिया। क्या आप भी यही नियति भुगतना चाहते हैं?” युधिष्ठिर ने कहा, “मैं वह नहीं लेना चाहता जो मेरा नहीं है। मुझसे अपने सवाल पूछो, और मैं उनका यथासंभव उत्तर दूंगा।”
यक्ष के प्रश्न:
यक्ष: पृथ्वी से भी भारी क्या है? आकाश से भी ऊंचा क्या है?
युधिष्ठिर: माता पृथ्वी से भी भारी है। पिता आकाश से भी ऊंचा है।
यक्ष: हवा से भी तेज चलने वाला क्या है? तिनकों से भी ज्यादा असंख्य क्या है?
युधिष्ठिर: मन हवा से भी तेज चलने वाला है,चिंता तिनकों से भी ज्यादा असंख्य होती है।
यक्ष: रोगी का मित्र कौन है? मृत्यु के समीप व्यक्ति का मित्र कौन है?
युधिष्ठिर: वैद्य रोगी का मित्र है, मृत्यु के समीप व्यक्ति का मित्र है दान।
यक्ष: यश का मुख्य स्थान क्या है? सुख का मुख्य स्थान क्या है?
युधिष्ठिर: यश का मुख्य स्थान दान है,सुख का मुख्य स्थान शील है।
यक्ष: धन्य पुरुषों में उत्तम गुण क्या है? मनुष्य का परम आश्रय क्या है?
युधिष्ठिर: धन्य पुरुषों में उत्तम गुण है कार्य-कुशलता, दान मनुष्य का परम आश्रय है।
यक्ष: लाभों में प्रधान लाभ क्या है? सुखों में उत्तम सुख क्या है?
युधिष्ठिर: निरोगी काया सबसे प्रधान लाभ है, सबसे उत्तम सुख है संतोष।
यक्ष: दुनिया में श्रेष्ठ धर्म क्या है? किसको वश में रखने से मनुष्य शोक नहीं करते?
युधिष्ठिर: दया दुनिया में श्रेष्ठ धर्म है,मन को वश में रखने से मनुष्य शोक नहीं करते।
यक्ष: किस वस्तु को त्यागकर मनुष्य दूसरों को प्रिय होता है? किसको त्यागकर शोक नहीं होता?
युधिष्ठिर: अहंकार को त्यागकर मनुष्य सभी को प्रिय होता है,क्रोध को त्यागकर मनुष्य शोक नहीं करता।
यक्ष: किस वस्तु को त्यागकर मनुष्य धनी होता है? किसको त्यागकर सुखी होता है?
युधिष्ठिर: काम-वासना को त्यागकर मनुष्य धनी होता है,लालच को त्यागकर वह सुखी होता है।
यक्ष: मनुष्य मित्रों को किसलिए त्याग देता है? किनके साथ की हुई मित्रता नष्ट नहीं होती?
युधिष्ठिर: लालच के कारण मनुष्य मित्रों को त्याग देता है,सच्चे लोगों से की हुई मित्रता कभी नष्ट नहीं होती।
यक्ष: दिशा क्या है? जो बहुत से मित्र बना लेता है, उसे क्या लाभ होता है?
युधिष्ठिर: सत्पुरुष दिशाएं हैं,जो बहुत से मित्र बना लेता है, वह सुख से रहता है।
यक्ष: उत्तम दया किसका नाम है? सरलता क्या है?
युधिष्ठिर: सबके सुख की इच्छा रखना ही उत्तम दया है,सुख-दुःख में मन का एक जैसा रहना ही सरलता है।
यक्ष: मनुष्यों का दुर्जय शत्रु कौन है? सबसे बड़ी बीमारी क्या है?
युधिष्ठिर: क्रोध ऐसा शत्रु है, जिस पर विजय पाना मुश्किल होता है,लालच सबसे बड़ी बीमारी है।
यक्ष: साधु कौन माना जाता है? असाधु किसे कहते हैं?
युधिष्ठिर: जो समस्त प्राणियों का हित करने वाला हो, वही साधु है,निर्दयी पुरुष को ही असाधु माना गया है।
यक्ष: धैर्य क्या कहलाता है? परम स्नान किसे कहते हैं?
युधिष्ठिर: इंद्रियों को वश में रखना धैर्य है,मन के मैल को साफ करना परम स्नान है।
यक्ष: अभिमान किसे कहते हैं? कौन-सी चीज परम दैवीय है?
युधिष्ठिर: धर्म का ध्वज उठाने वाले को अभिमानी कहते हैं,दान का फल परम दैवीय है।
यक्ष: मधुर वचन बोलने वाले को क्या मिलता है? सोच-विचारकर काम करने वाला क्या पाता है?
युधिष्ठिर: मधुर वचन बोलने वाला सबको प्रिय होता है,सोच-विचारकर काम करने से जीवन में जीत हासिल होती है।
यक्ष: सुखी कौन है?
युधिष्ठिर: जिस व्यक्ति पर कोई कर्ज नहीं है, जो दूसरे प्रदेश में नहीं है, जो व्यक्ति पांचवें-छठे दिन भी घर में रहकर साग-सब्जी खा लेता है, वही सुखी है।
यक्ष: आश्चर्य क्या है?
युधिष्ठिर: हर रोज संसार से प्राणी यमलोक जाते हैं. लेकिन जो बचे हुए हैं, वे सर्वदा जीने की इच्छा करते रहते हैं। इससे बड़ा आश्चर्य और क्या होगा?
यक्ष: सबसे बड़ा धनी कौन है?
युधिष्ठिर: जो मनुष्य प्रिय-अप्रिय, सुख-दुःख, अतीत-भविष्य में एक समान रहता है, वही सबसे बड़ा धनी है।
युधिष्ठिर ने सारे प्रश्नों के उत्तर सही दिए अंत में यक्ष बोला,’युधिष्ठिर मैं तुम्हारे एक भाई को जीवित करूंगा।तब युधिष्ठिर ने अपने छोटे भाई नकुल को जिंदा करने के लिए कहा। लेकिन यक्ष हैरान था उसने कहा तुमने भीम और अर्जुन जैसे वीरों को जिंदा करने के बारे में क्यों नहीं सोचा।’
युधिष्ठिर बोले, मनुष्य की रक्षा धर्म से होती है। मेरे पिता की दो पत्नियां थीं। कुंती का एक पुत्र मैं तो बचा हूं। मैं चाहता हूं कि माता माद्री का भी एक पुत्र जीवित रहे। यक्ष, युधिष्ठिर उत्तर सुनकर काफी खुश हुए और महाभारत की जीत का वरदान देकर, सभी भाइयों को जीवन प्रदान करते है और अंतर्धान हो जाते है।
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