सारे शास्त्र-स्मृतियों का मूल है वेद। वेदों का मूल है गायत्री और गायत्री का मूल है ॐकार। ॐकार से गायत्री, गायत्री से वैदिक ज्ञान और उससे शास्त्र और सामाजिक प्रवृत्तियों की खोज हुई।
पतंजलि महाराज ने कहा हैः
तस्य वाचकः प्रणवः। ‘परमात्मा का वाचक ॐकार है।’ (पातंजल योगदर्शन, समाधिपादः 27)
सब मंत्रों में ॐ राजा है। ॐकार अनहद नाद है। यह सहज में स्फुरित हो जाता है। अकार, उकार, मकार और अर्धतन्मात्रा युक्त ॐ एक ऐसा अद्भुत भगवन्नाम मंत्र है कि इस पर कई व्याख्याएँ हुईं, कई ग्रंथ लिखे गये फिर भी इसकी महिमा हमने लिखी ऐसा दावा किसी ने नहीं किया। इस ॐकार के विषय में ज्ञानेश्वरी गीता में ज्ञानेश्वर महाराज ने कहा हैः
ॐ नमो जी आद्या वेदप्रतिपाद्या
जय जय स्वसंवेद्या आत्मरूपा।
परमात्मा का ॐकार स्वरूप से अभिवादन करके ज्ञानेश्वर महाराज ने ज्ञानेश्वरी गीता का प्रारम्भ किया।
धन्वंतरि महाराज लिखते हैं कि ॐ सबसे उत्कृष्ट मंत्र है।
वेदव्यास जी महाराज कहते हैं कि मंत्राणां प्रणवः सेतुः। यह प्रणव मंत्र सारे मंत्रों का सेतु है।
कोई मनुष्य दिशाशून्य हो गया हो, लाचारी की हालत में फेंका गया हो, कुटुम्बियों ने मुख मोड लिया हो, किस्मत रूठ गयी हो, साथियों ने सताना शुरु कर दिया हो, पड़ोसियों ने पुचकार के बदले दुत्कारना शुरु कर दिया हो…. चारों तरफ से व्यक्ति दिशाशून्य, सहयोगशून्य, धनशून्य, सत्ताशून्य हो गया हो, फिर भी हताश न हो वरन् सुबह शाम 3 घंटे ॐकार सहित भगवन्नाम का जप करे तो वर्ष के अंदर वह व्यक्ति भगवद्शक्ति से सबके द्वारा सम्मानित, सब दिशाओं में सफल और सब गुणों से सम्पन्न होने लगेगा। इसलिए मनुष्य को कभी भी अपने को लाचार, दीन-हीन और असहाय मानकर कोसना नहीं चाहिए। भगवान तुम्हारे आत्मा बनकर बैठे हैं और भगवान का नाम तुम्हें सहज में प्राप्त हो सकता है, फिर क्यों दुःखी होना !
रोज रात्रि में तुम 10 मिनट ॐकार का जप करके सो जाओ। फिर देखो, इस मंत्र भगवान की क्या-क्या करामात होती है ! और दिनों की अपेक्षा वह रात कैसी जाती है और सुबह कैसी जाती है ! पहले ही दिन फर्क पड़ने लग जायेगा।
मंत्र के ऋषि, देवता, छंद, बीज और कीलक होते हैं। इस विधि को जानकर गुरुमंत्र देने वाले सद्गुरु मिल जायें और उसका पालन करने वाला सत्शिष्य मिल जाय तो काम बन जाता है। ॐकार मंत्र का छंद गायत्री है, इसके देवता परमात्मा स्वयं हैं और मंत्र के ऋषि भी ईश्वर ही हैं।