हनुमान बाहुक: गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा की गई चवालीस पद वाली हनुमान जी की प्रार्थना

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गोस्वामी तुलसीदास जी को जीवन के उत्तरार्ध में बाँहों में असहनीय पीड़ा शुरू हो गई थी। फोड़े फुंसी जैसी व्याधियों ने उन्हें घेर लिया था। उन्होंने चिकित्सा पद्धति का सहारा लिया। औषध, यंत्र, मंत्र, त्रोटक आदि का सहारा लिया। परंतु गहन वेदना से आराम नहीं मिला। शारीरिक कष्ट से दुखी तुलसी बाबा को याद आई होगी कि उन्होंने ‘श्रीहनुमान चालीसा’ में भक्तों को नीरोग रहने का मंत्र दिया है, ‘नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा’। स्वस्थ होने के लिए गुसाईं जी ने बजरंग बली की आराधना प्रारंभ कर दी।

गोस्वामी जी ने हनुमान जी की स्तुति की और उनसे रोगमुक्ति की प्रार्थना की। यह स्तुति इतनी प्रभावशाली है कि तुलसी बाबा का कष्ट दूर हो गया।

गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा की गई चवालीस पद वाली हनुमान जी की यह प्रार्थना ‘हनुमान बाहुक’ है। हनुमत्कृपा प्राप्त करने, संकट से रक्षा तथा रोगों से मुक्ति के लिए ‘हनुमान बाहुक’ का श्रद्धापूर्वक पाठ अत्यंत प्रभावी है।

अद्भुत प्रार्थना है ‘हनुमान बाहुक’। छप्पय, झूलना, घनाक्षरी, सवैया जैसे छंदोंवाली इस स्तुति का लयबद्ध पाठ एक दिव्य अनुभव है। इसके सत्रहवें पद में तुलसी बाबा पवनकुमार से उलाहना भरी विनती करते हैं-

‘संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरीके-से जाले।
बूढ़ भये, बलि, मेरिहि बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले’।’

अर्थात् तुलसीदास जी कहते हैं, आपका नाम लेने से संपूर्ण संकट और सोच मकड़ी के जाले के समान फट जाते हैं। बलिहारी! क्या आप मेरी ही बार बूढ़े हो गए अथवा बहुत से ग़रीबों का पालन करते करते अब थक गए हैं? (इसी से मेरा संकट दूर करने में ढील कर रहे हैं)
सोचिए, अपने आराध्य को इस तरह का उलाहना तुलसी बाबा जैसे उनके परम भक्त ही दे सकते हैं।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने अत्यंत कृपापूर्वक हमें सुचारू रूप से सुखी, स्वस्थ, सफल, निष्कंटक एवं सार्थक जीवन बिताने तथा इहलोक और परलोक को संवारने के लिए अनेक अनमोल रत्न प्रदान किए हैं। ‘हनुमान बाहुक’ उनमें से एक है।

लेख – रमेश रंजन त्रिपाठी

 

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