मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, एम्स में किडनी प्रत्यारोपण को लेकर आयोजित एक सम्मेलन में नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पाल ने ज्यादातर सरकारी मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण सर्जरी नहीं होने पर बिफर पड़े। उन्होंने कहा कि दिल्ली में मौजूद 40-50 वर्ष पुराने अस्पतालों में भी प्रत्यारोपण सर्जरी नहीं हो रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय व राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन के साथ मिलकर देश में 60 सरकारी अस्पतालों में किडनी व 25 अस्पतालों में लिवर प्रत्यारोपण शुरू करने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। इंडियन सोसाइटी ऑफ ट्रांसप्लांट सर्जन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में पाल ने कहा कि अंग प्रत्यारोपण सर्जन की कमी को दूर करने के लिए तीन वर्ष के प्रशिक्षण की जगह छह माह का प्रशिक्षण शुरू कर करना होगा। डीएनबी कोर्स को बढ़ावा देना होगा। ताकि प्रशिक्षण के लिए डाक्टरों को विदेश न जाना पड़े। अभी देश में किडनी प्रत्यारोपण के लिए पंजीकृत 612 अस्पतालों में 535 निजी और सरकारी अस्पताल सिर्फ 77 हैं। करीब 35 सरकारी अस्पतालों में ही सक्रिय रूप से किडनी प्रत्यारोपण होता है।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 200 निजी अस्पतालों व 22 सरकारी अस्पतालों में लिवर प्रत्यारोपण होता है। हर वर्ष करीब 50 हजार मरीजों को लिवर प्रत्यारोपण की जरूरत होती है, जबकि करीब चार हजार मरीजों लिवर प्रत्यारोपण हो पाता है। इसमें भी सरकारी अस्पतालों की भागीदारी कम है। देश में मौजूद 300 सरकारी मेडिकल कालेजों में से 187 पुराने हैं, जिसमें प्रत्यारोपण सर्जरी नहीं हो पाती। आयोजन समिति के चेयरमैन डॉ. वीके बंसल ने कहा कि उम्मीद है कि दो-तीन महीने में अंग प्रत्यारोपण सर्जरी प्रशिक्षण के लिए अल्प अवधि का कोर्स बनेगा। ताकि प्रत्यारोपण सर्जन की कमी को दूर किया जा सकेगा। एम्स के निदेशक डॉ. एम श्रीनिवास ने बताया कि संस्थान में करीब 200 बेड की क्षमता का अंग प्रत्यारोपण व प्रशिक्षण केंद्र बनेगा, जिससे एम्स में प्रत्यारोपण की सुविधा बढ़ेगी।
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