यत्र सोमः सदमित् तत्र भद्रम्

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अर्थववेद कांड ७ सूक्त १८ मंत्र २ का अंश:
जहाँ परमेश्वर के ज्ञान की ज्योति है, वहाँ हर प्रकार सुख है।

परमेश्वर की दो प्रकार की ज्योति है। एक तो उन द्वारा दिया गया वेद ज्ञान। वेद का अर्थ ही होता है परमात्मा द्वारा दिया गया ज्ञान। अन्य किसी ज्ञान को वेद नहीं कह सकते। क्योंकि वेद ज्ञान में अ से लेकर ज्ञ तक प्रत्येक विषय विधा का प्रकाश किया गया है जो कि परमात्मा के ही वश की बात है।
अन्य कोई भी चाहे कितना ही उच्च महापुरुषों हो उसके ज्ञान को वेद नहीं कहा जा सकता क्योंकि उस द्वारा दिया गया ज्ञान किसी एक विषय अथवा कुछ विषयों पर ही हो सकता है। इसलिए परमात्मा के अतिरिक्त देव महापुरुषों द्वारा दिया गया ज्ञान गीता कहा जा सकता है। जैसे श्री कृष्ण गीता, गणेश गीता, शिव गीता, प्रपन्ना गीता इत्यादि इत्यादि।
परमात्मा की दूसरी ज्योति वे स्वयं ज्ञान रूप, आनंद रूप, दिव्य शक्ति रूप हैं।
कोई भी मनुष्य अर्थात नर नारी परमात्मा के ज्ञान वेद से जुड़कर अथवा परमात्मा से ध्यान उपासना के माध्यम से जुड़कर जीवन का आनंद ले सकता है। इसीलिए मंत्र में कहा गया जहां परमात्मा की ज्योति है वहां हर प्रकार का सुख है I

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