सियाचिन ग्लेशियर में ‘ऑपेशन मेघदूत’ के 40 साल हुए पूरे, भारतीय सेना ने जारी किया वीडियो

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मीडिया सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार, भारतीय सेना ने दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र लद्दाख में सियाचिन ग्लेशियर में ऑपरेशन मेघदूत के 40 साल पूरे होने के मौके पर एक वीडियो जारी किया है। जिसमें दिखाया गया कि दुर्गम इलाकों में सेना के जवान बड़ी मुस्तैदी के साथ वहां डटे हुए हैं। वीडियो में सफेद चादर से ढके ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ते हुए भारतीय सेना के जवानों को दिखाया गया है। सियाचिन ग्लेशियर में ऑपरेशन मेघदूत के 40 साल के सफर को वीडियो में दिखाया गया है। दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र लद्दाख में सियाचिन ग्लेशियर में फहराए गए तिरंगे को भी साझा किया गया है।

जानकारी के लिए बता दें कि, 13 अप्रैल, 1984 का वो दिन, जब भारत ने सैन्य अभियानों के इतिहास में सफलता का ऐसा स्वर्णिम अध्याय लिखा जो बीते चार दशक से एक-एक भारतीय को रोमांचित कर रहा है। सियाचिन में चला ‘ऑपरेशन मेघदूत’ सैन्य इतिहास की एक अविस्मरणीय गाथा है। ऑपरेशन भले ही 1984 में हुआ, लेकिन इसकी भूमिका भारत के विभाजन के वक्त ही लिखी गई और पटकथा का बड़ा अंश कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्धों के वक्त लिखा गया। दरअसल, इस युद्ध के बाद 1949 में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की मध्यस्थता में दोनों देशों के बीच कराची समझौता हुआ। इसके अनुसार अविभाजित कश्मीर में एक युद्धविराम रेखा (सीएफएल) पर सहमत हुए। युद्धविराम रेखा का सबसे पूर्वी हिस्सा एनजे9842 नामक एक बिंदु से आगे खींची गई थी। तब केवल इतना कहा गया था कि एनजे9842 से यह रेखा ‘उत्तर से ग्लेशियरों तक’ चलेगी, सियाचिन ग्लेशियर, रिमो और बाल्टोरो होकर।

बता दें कि, समझौते में शामिल भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सचिव रहे स्वर्गीय लेफ्टिनेंट जनरल एस के सिन्हा ने बाद में लिखा, ‘उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि एनजे9842 से आगे की ऊंचाइयों पर सैन्य अभियान हो सकते हैं। किसी भी मामले में युद्धविराम रेखा बिल्कुल अस्थायी थी। जनमत संग्रह के बाद यह अप्रासंगिक हो जाएगी। इस प्रकार, हमने एनजे9842 से उत्तर की ओर ग्लेशियरों तक एक सीधी रेखा खींची। घटना के बाद बुद्धिमान होना आसान है। यह बेहतर होता अगर एनजे9842 से आगे की रेखा को अस्पष्ट नहीं छोड़ा जाता।’

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