चैत्र नवरात्र की सप्‍तमी पर विशेष, जहां शिव हैं वहां शक्ति होगी ही- Team DA Exclusive

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म.प्र.(भोपाल): जिस प्रकार वाणी और अर्थ दो होते हुए भी दो न होकर अभिन्न हैं। जिस प्रकार समुद्र और उसकी तरंगें दो होते हुए भी एक हैं, उनका सहअस्तित्व है उसी प्रकार शिव-शक्ति दो न होकर एक ही हैं- जहां शक्ति है वहां शिव है, कल्याण है, मंगल है। जहां शिव हैं वहां शक्ति होगी ही। शक्ति और शक्तिमान में भेद हो ही नहीं सकता। श्री दुर्गासप्तशती में यह सिद्धांत का अनेक प्रकार से प्रतिपादन किया गया है। आयुध से आयुध निकालकर कर देना क्या है! आयुध उस देवता के कार्यसाधन के उपकरण हैं, उसके शक्तिरूप हैं। देवताओं की क्रियाशक्ति का नाम ही आयुध है। अनेक भुजाऐं उनेक अनेकविध कर्तव्य और सामर्थ्य को प्रकट करने के लिए हैं इसीलिए उमा, शिव की पत्नि हैं, स्वसा हैं। दुर्गासप्तशती में ब्राह्मणी, इन्‍द्राणी आदि को ब्रह्म और इन्‍द्र की पत्नि नहीं उनकी शक्ति के रूप में उनका वर्णन किया गया है। इसमें मंत्रशक्ति के गोपनीय चमत्कारों का संकेत मिलता है। शक्ति का आविर्भाव उसके चिन्‍तन से होता है, संघटना से वह एक रूप होती है। इसलिए वह सभी देवताओं के तेज से समुद्भूत तेज है। इसके आश्रय से हम भी नियमानुसार आचरण कर अपनी सुप्‍त शक्ति को जगाकर इस प्रकार  तेजोशशि में बदल सकते हैं, देवी का वाहन सिंह है जिसे कि धर्म भी कहा गया है। जो कि वास्तव में ओजस् है, पौरुष का प्रतिरूप है। शक्ति को वाहन करने में ओज और पुरुष ही तो सामर्थ हो सकता है। श्री दुर्गासप्तशती में हमारे सामने दो व्यक्ति उपस्थित हैं, राज्यच्‍युत सूरथ और परिवार से निष्कासित समाधि। मां जगदम्‍बा के विशेष कृपापात्र- परम विद्वान पूज्‍यनीय श्री गंगाराम शास्त्री के इन सुविचारों के प्रवाह में वात्सल्यता भाव से मां के पवान ग्रन्‍थ में कथानक को तो एक से भी आगे बढाया जा सकता था- इन दोनों का प्रयोजन क्या है! किसी भी देवता की आराधना से सांसारिक सुखोपभोग अथवा मोक्ष की प्राप्ति की कामना की जा सकती है, पर देवी अपने भक्तों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चतुवर्ग की प्राप्ति कराने वाली है। जहां भोग मिलता है वहां मोक्ष नही है, जहां मोक्ष है वहां भोग नही है, पर श्री जगदम्‍बा की उपासना करने वालों के लिए भोग और मोक्ष दोनों ही करतलगत हैं। समाधि मोक्ष मार्ग का पथिक है और सुरथ राज्य का अभिलाषी।

सातवीं भगवती दुर्गा कालरात्रि

सबको मारने वाले काल की भी रात्रि (विनाशिका) होने से उनका नाम कालरात्रि है।

स्‍मरण मंत्र

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता ।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ।।

वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा ।

वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयड्कंरी ।।

मां दुर्गा का सातवां स्वरूप कालरात्रि के नाम से प्रसिद्ध है। इनके शरीर का रंग काला, सिर के बाल बिखरे हुए तथा गले में विद्युत की तरह चमकीली माल है। इनके तीन नेत्र हैं। इनकी नासिका के श्‍वास-प्रश्‍वास से अग्नि की भयंकर ज्‍वालाऐं निकलती हैं। इनका वाहन गर्दभ है। इनकी दायीं ओर की दो भुजाओं में अभय और वरमुद्रा तथा बायीं ओर की दो भुजाओं में लोहे का कांटा एवं तलवार सुशोभित है। मां कालरात्रि स्वरूप से भयानक होने के बाद भी सदैव शुभफलों की प्रदात्री हैं। इसलिए इनका एक नाम शुभड्करी है। नवरात्र के सांतवें दिन इनकी उपासना का विधान है।

माँ जगदंबा के चरण कमलों में समर्पित लेख का सांतवां पुष्प.. 🌹🙏🏻

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