Supreme Court: ‘पीड़ित को मुआवजे का भुगतान सजा कम करने का आधार नहीं हो सकता’, सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

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मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़ित को मुआवजे का भुगतान सजा कम करने का आधार नहीं हो सकता। यदि ऐसा किया गया तो इसका आपराधिक न्याय प्रशासन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। आपराधिक मामले में पीड़ित को मुआवजा देने का उद्देश्य उन लोगों का पुनर्वास करना है, जिन्हें अपराध के कारण नुकसान या चोट पहुंची है।

मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, इसका नतीजा यह होगा कि अपराधियों के पास न्याय से बचने के लिए ढेर सारा पैसा होगा, जिससे आपराधिक कार्यवाही का मूल उद्देश्य ही विफल हो जाएगा। पीठ ने कहा, मुआवजे का विचार पीड़ित विज्ञान के सिद्धांत पर आधारित है, जो इस कठोर वास्तविकता को स्वीकार करता है कि दुर्भाग्यवश, आपराधिक न्याय प्रणाली में पीड़ितों को भुला दिया जाता है। पीड़ित को मुआवजा देना कोई दंडात्मक उपाय नहीं, बल्कि सिर्फ क्षतिपूर्ति है। इसलिए इसका उस सजा से कोई संबंध नहीं है, जो दंडात्मक प्रकृति की है।
मीडिया में आई खबर के अनुसार, पीठ ने कहा, सीआरपीसी की धारा 357 अदालत को दोषसिद्धि का फैसला सुनाते समय पीड़ितों को मुआवजा देने का अधिकार देती है। यह अपराधों के प्रति एक रचनात्मक दृष्टिकोण है, जिसका आधार है कि अपराधी को सिर्फ दंड से पीड़ित या उसके परिवार को राहत नहीं मिल सकती।
मीडिया सूत्रों के अनुसार, शीर्ष अदालत राजेंद्र भगवानजी उमरानिया की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने गुजरात हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने एक आपराधिक मामले में दो लोगों की पांच साल की सजा को घटाकर चार साल कर दिया गया था।

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