इस संसार में ईश्वर ही परीक्षक है क्योंकि उसकी उपस्थिति में ही जब संसार के लोग अच्छे बुरे सब प्रकार के कर्म करते हैं तो उस समय ईश्वर उनकी परीक्षा ले रहा होता है क्योंकि वह किसी का हाथ नहीं पकड़ता परंतु मरने के बाद उनके कर्मों का फल जरूर देता है जैसे झूठ बोलना, चोरी करना, छल-कपट करना, धोखा देना, अन्याय करना, गलत रास्ता बताना, पाखंड और अंधविश्वास फैलाना इत्यादि पाप कर्म हैं तथा ये कर्म ही व्यक्ति को समस्या और संकट में डालते हैं।
पुण्य कभी हमें धोखा नहीं देता तथा सदा सुख ही दिलवाता है जबकि पाप कभी हमारी रक्षा नहीं करता बल्कि सदा दंड ही दिलवाता है।
इसलिए सदा पुण्य कर्म कर पाप करने से बचें तथा अपनी रक्षा करें क्योंकि पुण्य कर्म ही हमारा सच्चा रक्षक है जबकी पाप कर्म भक्षक है।
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