नवरात्र (चौथा दिन): त्रिविध तापयुक्त संसार जिनके उदर में स्थित है, वह भगवती कूष्माण्‍डा कहलाती हैं- DA Exclusive

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म.प्र.(भोपाल): चण्‍डी पाठ करने-कराने वाले उसके अर्थ को-रहस्य को भलीभांति समझ सकें इसी आध्‍यात्मिक धारा में श्री दुर्गासप्तशती, गुरु आशीष एवं निर्देशन में सहायक सिद्ध हो, आराधना को फलवती प्रमाणित करती है। जगज्‍जननी से जो निवेदन किया जा रहा है, यदि निवेदक स्वयं उसका आशय नहीं समझता तो उसका पाठ इस प्रकार होगा-
नॉर्थज्ञानविहींन शब्‍दस्‍योच्‍चारणं फलति ।
भस्मनि वन्हिविहीने न प्रक्ष्प्तिं हविर्ज्‍वलति ।।
बिना प्रज्वलित अग्नि के जिस प्रकार आहुति भस्‍म में देना, उसी प्रकार बिना अर्थ ज्ञान के पाठ करना। हमारी आराधना-साधना, प्रार्थना-स्तुति, समर्पण, श्रद्धा एवं भक्ति फलिभूत हो, अभिष्‍ट सिद्धि कराने वाली हो, इसके लिए शास्त्र में निर्दिष्‍ट नियमों का पालन भी आवश्यक होता है। श्री दुर्गासप्तशती के पाठ करने में शीघ्रता न करें। पदाक्षर का उच्चारण स्पष्ट हो तभी इसका परायण तन्मयता से संभावित सफल होकर देवी मां की प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष उपस्थिति का लौकिक- अलौकिक आनंद प्रदान कराता है। श्री दुर्गासप्तशती का पूरा माहात्‍म्‍य मंत्रमय है। यदि एकाग्रता के साथ अर्थ और भाव को ह्रदयंगम करते हुए पाठ किया जाय तो वातावरण में जो स्वर लहरी, जो स्‍पन्‍दन, जो तरंगें प्रवाहित होती हैं, उन तरंगों में, उस महिमा समुद्र में साधक सत्‍ता-शक्ति के समन्वित स्रोत से अपनी क्षमतानुकूल प्रकाशित होने लगता है।
चतुर्थ भगवती दुर्गा कूष्माण्‍डा
त्रिविध तापयुक्त संसार जिनके उदर में स्थित है, वह भगवती कूष्माण्‍डा कहलाती हैं। नवरात्री के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी की आराधना का विधान है। देवी कूष्माण्डा सृष्टि की सर्जक मानी जाती हैं। वे ब्रह्मांड को अपने हाथ में रखती हैं। इनके हाथ में अमृत कलश और कुम्हड़ा होता है। इनके पूजन से समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
स्‍मरण मंत्र
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुप्‍तमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
मां दुर्गा के चौथे स्‍वरूप को कूष्माण्‍डा कहते हैं। अपने मन्‍दस्मित हास से अण्‍ड और ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण ही ये कूष्मांडा नाम से कीर्तित हुईं। अपने हास्य से ब्रह्मांड का निर्माण करने के कारण ये सृष्टि की आदिशक्ति हैं। इनके शरीर की कांति सूर्य के समान देदीप्‍यमान है। इनके दाहिने ओर के हाथों में कमण्‍डलु, धनुष, बाण तथा कमल से सुशोभित हैं और बायें ओर के हाथों में अमृत-कलश, जपमाला, गदा तथा चक्र हैं। इनके सिर पर स्वर्णमुकुट और कानों में स्‍वर्णाभूषण हैं। ये सिंह के ऊपर आरूढ़ हैं। इनकी उपासना नवरात्र के चौथे दिन की जाती है। मां कूष्माण्‍डा की उपासना से समस्त रोग-शोक विनष्ट हो जाते हैं तथा आयु, यश, बल और आरोग्‍य की वृद्धि होती है।
माँ जगदंबा के चरण कमलों में समर्पित लेख का चतुर्थ पुष्प..🌹🙏🏻
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