भारतीय पर्व त्यौहार और उत्सव

0
238

राहु मंगल अंगारक योग, बुढ़वा मंगल योग
ऊषा सक्सेना

सनातन हिन्दू संस्कृति में हर दिन त्यौहार और उत्सव है। संवतसर नव वर्ष का प्रारम्भ हो या अंत, वर्ष के बारह महीने एक महीने के दोपक्ष कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष इन पक्षों में ही पड़ने वाली तिथियों के नाम। एक माह मेंतीस दिन एक पक्ष में पंद्रह दिन प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक कृष्ण पक्ष अमावस्या के बाद की प्रतिपदा से लेक पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष। कुल सताईस नक्षत्र। बारह राशियों हर माह सूर्य एक राशि पर भ्रमण करते बारह राशियों को पार करते हैं। चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा सेनवसंवतसर प्राम्भ होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन ब्रह्मा ने सृष्टि का सृजन करते हुये चारों युग में से सबसे पहले सतयुग को धरती पर अवतरित किया था। नवरात्रि का प्रारम्भ देवी का दुष्टों के दमन के लिये शक्ति रूप अवतार। सौर मंडल के नवग्रह में सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि के साथ ही राहु और केतु छाया ग्रह हैं जिनकी कोई राशि नही होने से स्थान भाव और भावेश के अनुसार ही फल देते हैं। इस तरह सात ग्रहों केनाम पर उनको समर्पित सप्ताह के सात दिन। रविवार सूर्य देव को समर्पित सोमवार चंद्रदेव को मंगल वार मंगलदेव को समर्पित दिन बुधवार बुद्धि के देवता बुध को गुरुवार ज्ञान के देवता देवगुरु बृहस्पति को , शुक्रवार दैत्य गुरु सुख वैभव ऐश्वर्य और कलाओं के स्वामी शुक्राचार्य को एवं शनिवार न्याय के देवता शनि‌ को समर्पित है। इस तरह विशेष तिथि वार नक्षत्र के संयोग से त्यौहार और पर्व मनाये जाते हैं जिनका अपना ज्योतिषीय महत्व है‌। दिनांक 29 मार्च 2022 आज का दिन चैत्र मास कृष्ण पक्ष की द्वादशी मंगलवार शिव जी का प्रदोष व्रत सब एक साथ होने से यह अपना विशिष्टयोग बना रहा है। इसे बुढ़वा मंगल भी कहते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार :- हिरण्याक्ष का पुत्र अंधक उज्जैन का राजा होकर महाशक्ति शाली था। उसके समान ही उसका पुत्र कनक भी शक्तिशाली था। कनक ने अपने साथियों के साथ देवलोक पर विजय पाने के लिये उस पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में महाबली देवराज इंद्र के द्वारा उसकी हत्या कर देने पर अपने पुत्र की हत्या और पराजय से क्रोधित होकर दैत्यराज अंधक ने अपने सभी महाबली दैत्य एवं दानव एवं राक्षसी सेना के साथ देवलोक पर आक्रमण कर इंद्र को पराजित करते हुये स्वर्ग पर अपना आधिपत्य कर लिया। इंद्र अपने साथी देवताओं के साथ भगवान शिव की शरण में गये। शिव जी बहुत समय तक अंधक के साथ युद्ध करते हुये उसे मार पाये। अंधक के साथ हुये युद्ध से उत्पन्न थकान और श्रम के कारण उन्हें निद्रा आगई। उसी निद्रा मे उनके मस्तक से श्रम जनित पसीने की अंगारक बूंदे उज्जैन की धरती पर गिरी जिसे भू देवी ने अपने आंँचल में समेट लिया। उन्हीं अंगारक बूंदों से भूमिपुत्र के रूप में मंगल का जन्म हुआ। जिस स्थान पर मंगल का जन्म हुआ उज्जैन में वह स्थान मंगलनाथ के नाम से प्रसिद्ध हैं। शिव के क्रोधजनित श्रमबूंदों से जनित मंगल के अंदर भी शिव का पुत्र होने से क्रोधी स्वभाव है। शिवजी की क्रूरता के कारण अंधक वध से जन्मे मंगल का स्वभाव भी क्रूर और क्रोधी है।मंगलवार को जन्म लेने से उनका नाम मंगलदेव पड़ा। आज के दिन उनका पूजन बुढ़वा मंगल शिव के रूप में ही पूजा जाता है।
जन्मपत्री में मंगल और राहु के एकसाथ किसी भी भाव अथवा राशि में एक स्थान पर बैठने से अंगारक योग बनता है।इस दोष के परिहार के लिये भी मंगलनाथ का विशेष पूजन किया जाता है। अपनी शक्ति के कारण मंगलदेव का सौर नवग्रह मंडल में सूर्य और चंद्रमा के बाद तीसरा महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। मंगल सदा अमंगल ही नही करता वरन वह क्रूर ग्रह होकर हमारे शरीर को शक्तिशाली भी बनाता है। साहस और शौर्य का प्रतीक है मंगल। इसी कारण वह देवताओं की सेना के सेनापति भी हैं।

Google search engine

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here