मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने अरावली पहाड़ियों को लेकर पर्यावरणविदों और आम जनता के बीच तीखी बहस छेड़ दी है। इस ‘100 मीटर फैसले’ में कहा गया है कि अरावली इलाके में 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अपने आप जंगल के तौर पर वर्गीकृत नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भूमि को वन घोषित करने का निर्णय राजस्व रिकॉर्ड, सरकारी अधिसूचना और वास्तविक भौतिक स्थिति के आधार पर लिया जाएगा।
आप को बता दे, अरावली पहाड़ियां दिल्ली-एनसीआर के लिए प्राकृतिक धूल बैरियर का काम करती हैं जो थार रेगिस्तान की धूल रोकती हैं तथा भूजल स्तर बनाए रखती हैं। पर्यावरणविदों का मानना है कि यह फैसला अरावली की सुरक्षा को कमजोर कर सकता है तथा विकास के नाम पर खनन और वन कटाई का रास्ता खोल सकता है। इससे PM10, PM2.5 जैसे प्रदूषक बढ़ सकते हैं, AQI बिगड़ सकता है तथा जल संकट गहरा सकता है। कुछ लोग इसे कानूनी स्पष्टता का कदम मानते हैं लेकिन सेव अरावली अभियान तेज हो गया है।
Image source: सोशल मीडिया
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