स्‍वामी रामसुखदास महाराज के अमृत वचन

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अपने घर में बुजुर्गों को गीताप्रेस गोरखपुर का साहित्‍य पढ़ते देखा है। चाहे पूजाघर में रखी रामायण, भगवदगीता या रामचरितमानस और अन्‍य पुस्‍तकें हों या मासिक पत्रिका कल्‍याण और इनके साथ ही बच्‍चों के लिए उपयोगी साहित्‍य भी गीताप्रेस उपलब्‍ध करवाता था। उन पुस्‍तकों के लेखक के रूप में हम स्‍वामी रामसुखदासजी के नाम से परिचित हैं।

गीता पर लिखा गया उनका भाष्‍य ‘साधक-संजीवनी’ उनकी सबसे ज्‍यादा बिकने वाली किताबों में से है। विद्वानों के अनुसार आधुनिक समय में श्रीमदभगवद्गीता की सबसे सरल और प्रामाणिक व्‍याख्‍या इस पुस्‍तक में है। इसके अलावा भी उन्‍होंने आमजन के मार्गदर्शन और हिन्‍दू दर्शन की व्‍याख्‍या के लिए बहुत सी रचनाएं लिखीं। इनकी रचनाओं में उन्‍होंने एक बात पर विशेष तौर पर कही है कि भगवदप्राप्ति सबके लिए बहुत ही सरल और सहज है और इसके लिए किसी विशेष या कठिन मार्ग पर चलने की आवश्‍यकता नहीं है।

 

यहॉं उनकी अमृतवाणी से निकले कुछ बिन्‍दु प्रस्‍तुत हैं :-

**भगवान याद करने मात्र से प्रसन्‍न हो जाते हैं, इतना सस्‍ता कोई नहीं।

**भगवान के किसी मनचाहे रूप को मान लो और भगवान के मनचाहे आप बन जाओ।

**आप भगवान के बिना नहीं रह सकें तो भगवान की ताकत नहीं कि आपके बिना रह जायें।

**ज्ञानी भगवान को कुछ नहीं दे सकता पर भक्‍त भगवान को प्रेम देता है। भगवान प्रेम के भूखे हैं ज्ञान के नहीं।

**मनुष्‍य खुद अपने कल्‍याण में लग जाये तो इसमें धर्म, ग्रंथ, महात्‍मा, संसार, भगवान सब सहायता करते हैं।

**भगवान किसी को भी अपने से नीचा नहीं बनाते जो भगवान की गरज करता है उसे भगवान अपने से ऊंचा बनाते हैं।

**भगवान को याद करना ही उनकी सेवा करना है, पत्र-पुष्‍प-फल की भी आवश्‍यकता नहीं। द्रोपदी ने केवल याद किया था।

**जैसे मां बालक का सब काम राजी होकर करती है, ऐसे ही जो भगवान की शरण हो जाते हैं उनका सब काम भगवान करते हैं।

**कलियुग उनके लिए खराब है जो भगवान का भजन-स्‍मरण नहीं करते, भगवदभजन करने वालों के लिए तो कलियुग भी अच्‍छा है।

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