राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज नई दिल्ली के प्रगति मैदान में पुस्तकालय महोत्सव को संबोधित किया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि – “पुस्तकालयों का विकास, समाज और संस्कृति के विकास से जुड़ा होता है। यह सभ्यताओं और संस्कृतियों की उन्नति का पैमाना भी होता है। पुस्तकालय से जुड़े निर्माण और ध्वंस, दोनों तरह के उदाहरण हमारे देश के प्राचीन शिक्षा केंद्र नालंदा में देखे गए हैं। मेरा सुझाव है कि पुस्तकालयों को drawing room and study of the community के रूप में लोकप्रिय बनाया जाए। पुस्तकालय, सामाजिक सम्मिलन का केंद्र भी बनें और स्वाध्याय तथा चिंतन का भी।”
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि – “पुस्तकों और पुस्तकालयों के महत्व पर जितनी भी चर्चा की जाए वह कम है। पाण्डुलिपियों के संरक्षण तथा पुस्तकालयों के modernization और digitization के प्रयास बहुत महत्वपूर्ण हैं। Information और Communication Technology के उपयोग से पुस्तकालयों का स्वरूप बदल रहा है। मारे स्वाधीनता संग्राम के महानायकों ने तमाम संघर्षों और संकटों के बावजूद पुस्तकों के पठन-पाठन और लेखन पर जोर दिया था। John Ruskin की एक छोटी सी पुस्तक ने महात्मा गांधी की जीवनधारा को बदल दिया।”
Courtsey : @rashtrapatibhvn
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