मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सिलक्यारा जैसे हादसों की देश में पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए इससे सबक लेना समय की मांग है। इसी कड़ी में सिलक्यारा के घटनाक्रम को एनआइडीएम (नेशनल इंस्टीट्यूट आफ डिजास्टर मैनेजमेंट) केस स्टडी के रूप में लेगा। विश्व आपदा प्रबंधन सम्मेलन में भाग लेने आए एनआइडीएम के कार्यकारी निदेशक राजेंद्र रत्नू ने कहा कि आने वाले दिनों में जहां भी सुरंगों का निर्माण होगा, उन राज्यों के लोनिवि और एमओआरटी (मिनिस्ट्री आफ रोड ट्रांसपोर्ट) से विमर्श किया जाएगा। साथ ही एमओआरटी से बातचीत के आधार पर इसका माड्यूल तैयार किया जाएगा, ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं से बचा जा सके।
जानकारी के लिए बता दें कि, एनआइडीएम के कार्यकारी निदेशक रत्नू ने कहा कि सिलक्यारा के घटनाक्रम से हम क्या सीखते हैं, भविष्य में क्या कर पाएंगे, यह उनके संस्थान का मेंडेट रहेगा। उन्होंने कहा कि हमारा काम कौशल विकास का है। प्रयास यही रहेगा कि जितनी भी इंजीनियरिंग फर्म और कांट्रेक्टर्स हैं, वे इस घटनाक्रम को केस स्टडी के रूप में लें। उन्होंने कहा कि जहां भी सुरंग बनेंगी, प्रयास करेंगे कि वहां के राज्यों के लोनिवि के अलावा एमओआरटी के साथ इस बारे में विमर्श किया जाए।
मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, एमओआरटी के साथ दो हजार करोड़ रुपये की लागत की सड़कों का प्रोजेक्ट है, जिसमें जलवायु परिवर्तन समेत अन्य विषयों को ध्यान में रखते हुए निर्माण होना है। इस कड़ी में एमओआरटी के साथ बातचीत चल रही है। इसके हिसाब से जो भी माड्यूल निकलेगा, उस पर आगे बढ़ेंगे। उन्होंने कहा कि देश में हिमालयी व तटीय क्षेत्रों के साथ ही फ्लड प्लेन, हीटवेब वाले क्षेत्र, जहां जलवायु परिवर्तन का असर ज्यादा है, वहां के लिए बातचीत जारी है। इन अलग-अलग क्षेत्रों में सड़क निर्माण की तकनीकी को हम कैसे बेहतर कर सकते हैं, इस दिशा में काम चल रहा है।
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