Air India: ‘एयर इंडिया पर निजीकरण के बाद नहीं बनता मौलिक अधिकार के उल्लंघन का मामला’, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

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Air India: 'एयर इंडिया पर निजीकरण के बाद नहीं बनता मौलिक अधिकार के उल्लंघन का मामला', सुप्रीम कोर्ट का फैसला
(सुप्रीम कोर्ट) Image Source : Amar Ujala

मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, जनवरी 2022 में टाटा समूह की ओर से अधिग्रहण कर लिए जाने के बाद एयर इंडिया लिमिटेड (एआईएल) का संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य या उसके साधन के रूप में अस्तित्व समाप्त हो गया है और ऐसे में मौलिक अधिकार के कथित उल्लंघन का कोई मामला इसके खिलाफ नहीं बनता है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने एक फैसले में यह बात कही।

मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, शीर्ष अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 20 सितंबर, 2022 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों को खारिज कर दिया। इनमें एआईएल के कुछ कर्मचारियों द्वारा वेतन में कथित ठहराव और कर्मचारियों की पदोन्नति न होने और संशोधित वेतन के बकाया भुगतान में देरी से जुड़ी चार रिट याचिकाओं का निपटारा किया गया था।

मीडिया सूत्रों के अनुसार, शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाओं में संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), 16 (सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण) के उल्लंघन का दावा किया गया था।

मीडिया में आई खबर के अनुसार, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने एआईएल के निजीकरण के कारण रिट याचिकाओं की गैरविचारणीयता के आधार पर याचिकाओं का निपटारा किया था। फैसले में कहा गया है कि इस बात को लेकर कोई संशय नहीं है कि भारत सरकार ने अपना 100 प्रतिशत हिस्सा टैलेस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को हस्तांतरित कर दिया है और अब एक निजी कंपनी के रूप में उस पर सरकार का कोई प्रशासनिक नियंत्रण नहीं रह गया है। अदालत ने कहा कि इसलिए निजी कंपनी द्वारा अधिग्रहण किए जाने के बाद कंपनी को अब राज्य के स्वामित्व वाला नहीं माना जा सकता।’

मीडिया सूत्रों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, ”इस प्रकार, निर्विवाद रूप से, प्रतिवादी नंबर 3 (एआईएल) अपने विनिवेश के बाद भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत एक राज्य या इसकी साधन नहीं रह गई।” पीठ ने कहा कि यदि एआईएल को संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य की परिभाषा के अंतर्गत नहीं रखा जाता है, ऐसे में इसे संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अदालत के रिट अधिकार क्षेत्र के अधीन नहीं किया जा सकता है।

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