मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत रविवार को असम के डिब्रूगढ़ में वरिष्ठ नागरिकों के 8वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में शामिल हुए। सम्मेलन का आयोजन आध्यात्मिक गुरुओं को समर्पित गैर-लाभकारी संगठन इंटरनेशनल सेंटर फॉर कल्चरल स्टडीज (आईसीसीएस) करा रहा है, जो कि एक फरवरी तक चलेगा। अपने संबोधन में भागवत ने कहा कि भौतिक प्रगति के बावजूद दुनिया हजारों वर्षों से मौजूद समस्याओं का सामना कर रही है। सभी समस्याओं का समाधान धर्म और आध्यात्मिक एकत्मकता की प्राचीन अवधारणा में निहित है।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, भागवत ने कहा कि शिक्षा और प्रौद्योगिकी में प्रगति के बावजूद अभी भी युद्ध हो रहे हैं। बाहरी और आंतरिक दोनों तरह से शांति की कमी है। अहंकार और मन की संकीर्णता के मुद्दे अभी भी मौजूद हैं। संघ प्रमुख ने कहा, इन समस्याओं को समझने और हल करने के प्रयास किए गए हैं। इसके लिए विभिन्न सिद्धांत और दर्शन सामने आए हैं जो भौतिक समृद्धि और योग्यतम के अस्तित्व के सिद्धांत पर केंद्रित हैं। संप्रदाय भी स्थायी समाधान खोजने और अधिकतम लोगों के कल्याण के आदर्श को प्राप्त करने में विफल रहे हैं।
मीडिया सूत्रों के अनुसार, सम्मेलन में भागवत ने 30 से अधिक देशों की 33 से अधिक प्राचीन परंपराओं का प्रतिनिधित्व करने वाले प्राचीन परंपराओं और संस्कृतियों के बुजुर्गों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि कई सिद्धांत और वाद सामने आए। व्यक्तिवाद से साम्यवाद तक सभी सिद्धांत भौतिक समृद्धि पर केंद्रित रहे हैं। समाधान खोजने के लिए धर्म विकसित हुए लेकिन वे भी असफल रहे। वे सर्वे भवंतु सुखिनः.. सभी खुश रहें के प्राचीन ज्ञान तक नहीं पहुंच सके। उन्होंने कहा, हमारी अभिव्यक्ति अलग हो सकती है, इस विविधता को नकारात्मक रूप से देखने का कोई मतलब नहीं है। खुशी किसी वस्तु के उपभोग में नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक एकात्मकता में है।
मीडिया में आई खबर के अनुसार, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि उन्हें डिब्रूगढ़ में आठवें ‘इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस एंड गैदरिंग ऑफ एल्डर्स’ में संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत और 40 देशों के आध्यात्मिक गुरुओं के साथ शामिल होने का सम्मान मिला। दुनिया भर में स्वदेशी आस्थाओं को पुनर्जीवित करना और हमारी सांस्कृतिक विरासत को खत्म करने के प्रयासों को रोकना हमारा सामूहिक संकल्प है।
मीडिया सूत्रों के अनुसार, सीएम सरमा ने कहा कि भारत के स्वदेशी समुदाय मुख्यधारा के धर्मों की ओर से धर्मांतरण के प्रयासों का लक्ष्य बन गए हैं, जिसमें लोगों को प्रलोभन देकर लुभाया जाता है। उन्होंने युवा पीढ़ी से स्वदेशी आस्थाओं और धर्मों को जीवित रखने का आग्रह किया। सरमा ने कहा कि सदियों पुरानी विश्वास प्रणालियों को संरक्षित करना आवश्यक है, क्योंकि ये देश के सांस्कृतिक परिदृश्य का अभिन्न अंग हैं। हिमंत ने कहा, दुर्भाग्य से विभिन्न धार्मिक समूहों की जाने वाली मिशनरी गतिविधियों के परिणामस्वरूप स्वदेशी धार्मिक प्रथाओं का धीरे-धीरे क्षरण हो रहा है और इन आस्थाओं को मानने वाली आबादी में गिरावट का संस्कृति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, आईसीसीएस दुनिया की प्राचीन परंपराओं और संस्कृतियों के बुजुर्गों (आध्यात्मिक गुरु) के लिए सामाजिक-सांस्कृतिक मंच है। इसकी स्थापना डॉ. यशवंत ने की थी। इसका मुख्यालय अमेरिका में है। सांस्कृतिक विविधता के भरपूर पूर्वोत्तर भारत को इस बार सम्मेलन के लिए चुना गया। डिब्रूगढ़ में आयोजित इस सम्मेलन का उद्देश्य दुनिया के लिए साझा स्थायी समृद्धि के निर्माण के साथ प्राचीन स्वदेशी ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है।
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