मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इसरो के कार्टोसैट-2 उपग्रह को अंतरिक्ष से पृथ्वी के वायुमंडल में लाया गया। यह हाई रिजॉल्यूशन इमेजिंग उपग्रहों की दूसरी पीढ़ी का उपग्रह था। इसरो के एक अधिकारी ने शुक्रवार को इसकी जानकारी दी।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, कार्टोसैट-2 के सफलतापूर्वक पृथ्वी के वायुमंडल में उतरने को लेकर इसरो अधिकारी ने जानकारी देते हुए कहा कि सैटेलाइन ने 14 फरवरी को दोपहर 3:48 बजे हिंद महासागर के ऊपर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया। हालांकि उन्होंने कहा कि आशंका है कि या तो वह जल गया होगा या फिर इसका बचा हुआ हिस्सा समुद्र में गिर गया होगा, जिसे हम ढूंढ नहीं पाएंगे। इसरो ने कहा कि ‘इलेक्ट्रिकल पैसिवेशन’ 14 फरवरी को पूरा हो गया था और ट्रैकिंग दोबारा प्रवेश तक जारी रही। अंतिम टेलीमेट्री फ्रेम ने सफल पैसिवेशन की पुष्टि की, जिसमें उपग्रह लगभग 130 किमी की ऊंचाई पर पहुंच गया था।
मीडिया में आई खबर के अनुसार, कार्टोसैट-2 सैटेलाइन को 10 जनवरी 2007 में इसरो ने लांच किया था। लॉन्च के समय इसका वजन 680 किलोग्राम था। यह उपग्रह 635 किमी की ऊंचाई पर सूर्य तुल्यकालिक कक्षा (SSO) कक्षा में कार्य कर रहा था। इसरो के बयान के मुताबिक, 2019 तक उपग्रह ने शहरी नियोजन के लिए हाई रिजॉल्यूशन इमेजरी का काम किया।
मीडिया सूत्रों के अनुसार, उपग्रह के संबंध में बात करते हुए इसरो अधिकारी ने कहा कि शुरुआत में कार्टोसैट-2 को डी- आर्बिट में पहुंचने में लगभग 30 साल लगने की उम्मीद थी। हालांकि, इसरो ने अंतरिक्ष मलबे को कम करने पर अंतरराष्ट्रीय दिशा-निर्देशों का पालन करने के लिए बचे हुए ईंधन का इस्तेमाल करके अपनी परिधि को कम करने का विकल्प चुना। इसरो के मुताबिक, बाहरी अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र समिति (यूएन-सीओपीओयूएस) और अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति (आईएडीसी) जैसे संगठनों की सिफारिशों के बाद इस अभ्यास में टकराव के जोखिमों को कम करना और जीवन के अंत में सुरक्षित निपटान सुनिश्चित करना शामिल था।
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