मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, फ्रांस और चीन अपने रिश्तों को सुधारने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। इसी क्रम में रविवार को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग पेरिस पहुंचे। हालांकि, तिब्बत और शिनजियांग की वकालत करने वाले कार्यकर्ता भी इन क्षेत्रों में मानवाधिकारों के हनन पर चिंताओं को उजागर करने के लिए एकत्र हुए। उन्होंने शी के आने का विरोध किया।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पहली बार यूरोप की यात्रा कर रहे हैं। इस यात्रा के दौरान यूक्रेन-रूस युद्ध और बीजिंग तथा ब्रुसेल्स के बीच आर्थिक तनाव को लेकर बात होने की उम्मीद है। एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि शी के यूरोप की यात्रा की शुरुआत फ्रांस से होगी। इसी को लेकर वह पेरिस पहुंच गए हैं। वहीं, पाइरेनीज क्षेत्र में जाने से पहले शी सोमवार को फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन और यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन के साथ एक बैठक में शामिल होंगे। इसके अलावा, वह सर्बिया और हंगर भी जाएंगे।
मीडिया में आई खबर के अनुसार, शी के पेरिस पहुंचने पर जोरदार स्वागत हुआ। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, दोनों देशों चीन और फ्रांस के झंडों से सड़कें सजी हुई थीं। वहीं, चीनी नागरिकों के समूहों ने अपने राष्ट्रपति का स्वागत किया। उत्सव के माहौल के बीच, तिब्बत और शिनजियांग की वकालत करने वाले कार्यकर्ता भी राजधानी की सड़कों पर मौजूद थे। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति के पहुंचने पर विरोध-प्रदर्शन किया।
मीडिया सूत्रों के अनुसार, मार्च 2021 में शिनजियांग की स्थिति को लेकर यूरोपीय संघ द्वारा कुछ चीनी अधिकारियों और कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने पर बीजिंग ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई थी।
मीडिया में आई खबर के अनुसार, ह्यूमन राइट्स वॉच ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों से शी की पेरिस यात्रा के दौरान इन मुद्दों को सामने रखने का आग्रह किया। वहीं, मनमाने ढंग से हिरासत में लिए गए व्यक्तियों की रिहाई का भी आह्वान किया, जिसमें इल्हाम तोहती, एक उइगर अर्थशास्त्री और सखारोव शामिल हैं। संगठन ने जोर देकर कहा कि मैक्रों को तिब्बत और हॉन्गकॉन्ग के बारे में भी चिंता व्यक्त करनी चाहिए।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, ह्यूमन राइट्स वॉच की चीन की कार्यवाहक निदेशक माया वांग ने एक बयान में कहा, ‘राष्ट्रपति मैक्रों को शी जिनपिंग को यह स्पष्ट करना चाहिए कि मानवता के खिलाफ बीजिंग द्वारा किए जा रहे अपराधों से दोनों देशों के संबंध बिगड़ सकते हैं। मानवाधिकारों पर फ्रांस की चुप्पी केवल चीनी सरकार को बढ़ावा देगी, जिससे देश और विदेश में दमन को बढ़ावा मिलेगा।’
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