Glacial Lakes: तीन से चार दशकों में हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर झीलों का आकार बढ़ा, इसरो ने किया दावा

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Glacial Lakes: तीन से चार दशकों में हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर झीलों का आकार बढ़ा, इसरो ने किया दावा
(ग्लेशियर से बनी झील) Image Source : Amar Ujala

मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, हिमालय क्षेत्र में खासतौर पर भारतीय क्षेत्र में ग्लेशियर के पिघलने से बनी झीलों के आकार में पिछले तीन से चार दशकों में महत्वपूर्ण विस्तार हुआ है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सोमवार को 1984 से 2023 तक उपग्रह से ली गई तस्वीरों के आधार पर यह दावा किया है। इसरो के अनुसार पिछले 3 से 4 दशकों में लिए गए उपग्रह डेटा हिमालय के हिमाच्छादित वातावरण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं।

मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इसरो के अनुसार वर्ष 1984 से वर्ष 2023 के बीच उपग्रह से ली गई इन दीर्घकालिक तस्वीरों के अध्ययन से पता चलता है कि भारतीय क्षेत्र में इन हिमनद झीलों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आए हैं। इसरो के अनुसार 2016-17 के दौरान पहचाने गए 10 हेक्टेयर से बड़ी 2,431 झीलों में से 676 हिमनद झीलों का 1984 के बाद से उल्लेखनीय रूप से विस्तार हुआ है। विशेष रूप से, इनमें से 130 झीलें भारत के भीतर स्थित हैं, जिनमें से 65, 7 और 58 झीलें क्रमशः सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में स्थित हैं।

मीडिया में आई खबर के अनुसार, हिमालय के पर्वतों को अक्सर उनके व्यापक ग्लेशियरों और बर्फ के आवरण के कारण तीसरे ध्रुव के रूप में जाना जाता है। इन्हें वैश्विक जलवायु में परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील माना जाता है। दुनिया भर में किए गए शोधों ने बार-बार इस बात की पुष्टि की है कि दुनिया में मौजूद ग्लेशियर अठारहवीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के बाद से पिघलने और घटने की अभूतपूर्व दर का अनुभव कर रहे हैं।

मीडिया सूत्रों के अनुसार, गलेश्यिर के पिघलने ने हिमालय क्षेत्र में नई झीलों का निर्माण और मौजूदा झीलों का विस्तार होता है। ग्लेशियरों के पिघलने से बनी पानी के इन निकायों को हिमनद झीलों के रूप में जाना जाता है और हिमालय क्षेत्र में नदियों के लिए मीठे पानी के स्रोतों के रूप में ये महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, वे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) जैसे महत्वपूर्ण जोखिम भी पैदा करते हैं, जो निचले इलाकों में रहने वाले समुदायों के लिए विनाशकारी परिणाम ला सकते हैं। इसरो ने आगे कहा कि जीएलओएफ तब होता है जब ग्लेशियल झीलें प्राकृतिक बांधों जैसे कि मोराइन या बर्फ से बने बांधों के टूट जाने से बड़ी मात्रा में पिघला हुआ पानी नीचे की छोड़ती हैं। ऐसा होने से अचानक और गंभीर बाढ़ की स्थिति बन जाती है।

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