मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, जाने-माने लेखक और टिप्पणीकार गुरचरण दास ने कहा कि प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह थे, जो 1991 में आर्थिक सुधार लाए थे, न कि कांग्रेस पार्टी। दास ने यह बात अपनी पुस्तक ‘द डायलमा ऑफ एन इंडियन लिबरल’ के विमोचन के मौके पर कही। दास ने कहा कि भारत ने जो गलती 1991 में थी, वह अभी जारी रखे हुए है और वह गलती चुपके-चुपके सुधार करने और जनता के बीच उसका प्रचार नहीं करना है। उन्होंने कहा, हम चुपके-चुपके सुधार कर रहे थे।
इसका कारण यह था कि नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह और उनके आसपास के लोग इसको लेकर अपनी पार्टी को ही नहीं समझा पाए थे। इसलिए यह कांग्रेस पार्टी नहीं थी जिसने सुधार किए। वास्तव में कांग्रेस राव से इतनी नाराज हो गई कि उन्हें बाहर निकाल दिया।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, अपनी बात को साबित करने के लिए, दास ने पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर का उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि कैसे थैचर अपना 20 प्रतिशत समय सुधारों में और 80 प्रतिशत समय सुधारों के बारे में लोगों को बताने में लगाती थीं। पूर्व पीएम राव और कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार में उनके वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में लाए गए 1991 के ऐतिहासिक आर्थिक सुधारों ने भारत की स्थिति को एक बंद और नियंत्रित अर्थव्यवस्था से एक खुली और उदारीकृत अर्थव्यवस्था में बदल दिया।
मीडिया सूत्रों के अनुसार, दास ने कहा कि लोगों को सुधारों के बारे में नहीं बताने का पाप आज भी जारी है। नरसिम्हा राव के बाद के प्रधानमंत्रियों ने सुधार तो जारी रखा, लेकिन उसके बारे में लोगों को नहीं बताया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी रहे हों या यूपीए सरकार में पीएम रहे मनमोहन सिंह। यहां तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसके लिए जरूरी प्रचार नहीं कर रहे हैं। सुधार के बारे में सही तस्वीर पेश नहीं किए जाने से सुधार को लेकर आमतौर पर लोगों के बीच यह धारणा है कि यह अमीर को और अमीर और गरीब को और गरीब बनाता है। लोग अब भी बाजार समर्थक सुधार और व्यवसाय समर्थक सुधार में अंतर नहीं कर पाते।
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