मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इस्राइल हमास युद्ध के बीच नेतन्याहू सरकार को एक बड़ा झटका लगा है। मीडिया की माने तो इस्राइल की सुप्रीम कोर्ट ने नेतन्याहू सरकार के एक विवादित कानून को रद्द कर दिया है। मीडिया सूत्रों के अनुसार, यह वही कानून है, जिसके विरोध में तेल अवीव सहित कई इस्राइली शहरों में लोगों ने महीनों तक प्रदर्शन किया था।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण आपातकालीन सरकार की एकजुटता खतरे में आ गई है। दरअसल, प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू इस कानून का समर्थन कर रहे थे। वहीं, आपातकालीन सरकार के वित्त मंत्री बेजेलेल और रक्षा मंत्री योव गैलेंट कानून का विरोध कर रहे थे। स्मोट्रिच ने न्यायिक कानून को विभाजनकारी बताया है। 15 में से 12 न्यायाधीशों ने फैसला सुनाया कि अर्ध-संवैधानिक बुनियादी कानूनों को रद्द करना अदालत के कार्यक्षेत्र के भीतर ही है। अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि लोकतांत्रिक राज्य के रूप में कानून के कारण इस्राइल की विशेषताओं को नुकसान होता।
मीडिया में आई खबर के अनुसार, कुछ इस्राइली नेताओं का मानना है कि न्यायिक कानून के कारण सरकार में ही दो धड़े तैयार हो गए थे। इसी वजह से पीएम ने गैलेंट को अस्थाई रूप से बर्खास्त कर दिया था क्योंकि गैलेंट कानून का विरोध कर रहे थे। नेतन्याहू की लिकुड पार्टी ने फैसले पर टिप्पणी की है। पार्टी का कहना है कि सर्वोच्च अदालत का यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। युद्ध के दौरान यह फैसला सही नहीं है। वहीं, विपक्षी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री येर लापिद ने अदालत के फैसले का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने इस फैसले से हमें तोड़ दिया था। यह हमारे इतिहास का सबसे गलत फैसला था। अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को रद्द कर दिया है। यह तारीफ के काबिल है।
मीडिया सूत्रों के अनुसार, न्याय मंत्री यारिव लेविन ने पिछले साल जनवरी के पहले सप्ताह में न्यायिक व्यवस्था में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया था। न्यायिक प्रणाली में संशोधन के जरिए सरकार एक समीक्षा समिति के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय के नामांकित व्यक्तियों को बदलना चाहती है। इसके साथ ही नेतन्याहू सरकार संसद को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को अस्वीकार करने का अधिकार देने का प्रयास भी कर रही है। नए कानून के तहत 120 सीटों वाली इस्राइली संसद में 61 सांसदों के साधारण बहुमत से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द किया जा सकेगा। सुधार उस प्रणाली को भी बदल देगा जिसके माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है। इससे न्यायपालिका में राजनेताओं को अधिक नियंत्रण मिलेगा।
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