मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, चीन और मालदीव की बढ़ती निकटता के बीच अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने मुइज्जू प्रशासन को ‘ऋण संकट’ के प्रति आगाह किया है। चीन से अरबों डॉलर का कर्ज लेने वाले मालदीव को आगाह करते हुए आईएमएफ ने कहा है कि मालदीव को तत्काल अपनी नीति बदलने की जरूरत है। आईएमएफ ने कहा है कि भारत के साथ तनावपूर्ण रिश्तों के बीच मालदीव ने चीन से अरबों रुपये उधार लिए हैं। ऐसे में हिंद महासागर में रणनीतिक अहमियत वाले इस देश को तत्काल अपनी नीतियों पर दोबारा विचार करना चाहिए।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, आईएमएफ ने मालदीव की अर्थव्यवस्था की समीक्षा के बाद कहा, अगर मालदीव महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव नहीं करता है तो देश का कुल राजकोषीय घाटा और सार्वजनिक ऋण अधिक बने रहने का अनुमान है। गौरतलब है कि मालदीव की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर आधारित है। देश के राजस्व का लगभग एक तिहाई हिस्सा दूसरे देशों से आने वाले पर्यटकों से आता है। कोरोना महामारी के बाद देश की इकोनॉमी काफी हद तक उबरी है लेकिन इसके बावजूद उसे चीन से अरबों डॉलर का कर्ज लेना पड़ा है।
मीडिया में आई खबर के अनुसार, आईएमएफ ने कहा कि योजनाबद्ध तरीकों से एयरपोर्ट विस्तार और होटलों की संख्या में वृद्धि से मालदीव का आर्थिक विकास तेज हो सकता है। आईएमएफ ने कहा कि अनिश्चितता बनी हुई है। मालदीव पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ने का खतरा है। विश्व बैंक के मुताबिक मालदीव के वित्त मंत्रालय ने 2021 में स्वीकार किया था कि उसके पास तीन बिलियन डॉलर से अधिक विदेशी ऋण है। इसका 42 फीसदी हिस्सा चीन का है। ऐसे में आईएमएफ की चेतावनी मालदीव की आर्थिक सेहत के नजरिए से अहम मानी जा रही है।
मीडिया सूत्रों के अनुसार, विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि लक्षद्वीप के बहाने मालदीव के मंत्री चीन को खुश करने में लगे हैं। क्योंकि चीन के कर्ज तले मालदीव जबरदस्त तरीके से दबा हुआ है। जानकारी के मुताबिक, 2014 में चीन के राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान चीन- मालदीव का एक मैत्री पुल बनना शुरू हुआ, जबकि यहीं के तकरीबन 17 द्वीपों को पर्यटन के तौर पर विकसित करने के लिए करीब करीब 400 अरब डॉलर का कर्ज भी चीन ने मालदीव को दिया और इन द्वीपों का अगले 50 साल के लिए पट्टा करवा लिया।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, भारत और मालदीव के रिश्तों में तल्खी के बीच पर्यटन के मोर्चे पर मालदीव संघर्ष कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप प्रवास के बाद मालदीव के तीन मंत्रियों ने उनके खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। इससे आक्रोशित नेटिजन्स ने भारत में सोशल मीडिया पर मालदीव के बहिष्कार की मुहिम चलाई। दोनों देशों के बीच राजनयिक विवाद इतना आगे बढ़ा कि भारत से मालदीव जाने वाले पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट आई। मालदीव की अर्थव्यवस्था अपने पर्यटन क्षेत्र पर आधारित होने का अंदाजा इसी से होता है कि यहां विदेशी मुद्रा आय और सरकारी राजस्व का प्रमुख साधन है।
मीडिया सूत्रों के अनुसार, पर्यटन सीधे तौर पर मालदीव की जीडीपी का लगभग चौथाई हिस्सा है। पर्यटन यहां प्रत्यक्ष रोजगार का भी बड़ा जरिया है। मालदीव के लोगों के लिए रोजगार के अवसरों में पर्यटन का योगदान एक तिहाई से अधिक है। यदि पर्यटन से जुड़े क्षेत्रों को भी शामिल कर लिया जाए, तो यहां के कुल रोजगार (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष) में पर्यटन क्षेत्र का योगदान लगभग 70% तक बढ़ जाएगा। यह भी दिलचस्प है कि 2023 से पहले पिछले कुछ वर्षों में मालदीव जाने वाले पर्यटकों में भारतीयों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है। 2018 में देश के पर्यटन बाजार में भारत की हिस्सेदारी लगभग 6.1% थी। इस साल भारत से 90,474 लोग मालदीव घूमने पहुंचे जो पर्यटकों के आगमन का 5वां सबसे बड़ा स्रोत था। 2019 में 2018 की तुलना में लगभग दोगुनी संख्या में भारत पर्यटक द्वीप देश पहुंचे जो अन्य देशों के मुकाबले दूसरा सबसे ज्यादा आंकड़ा था।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, दोनों देशों के बीच दशकों से चले आ रहे मधुर रिश्तों में कड़वाहट 2023 के मालदीव आम चुनाव के बाद आई है। दरअसल, मालदीव में 9 और 30 सितंबर 2023 को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए थे। इस चुनाव में पीपुल्स नेशनल कांग्रेस के उम्मीदवार और माले के मेयर मोहम्मद मोइजू ने भारत समर्थक और निवर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को हराया और मालदीव के निर्वाचित राष्ट्रपति बने। इससे पहले चुनाव प्रचार के दौरान मोइजू की पार्टी ने ‘इंडिया आउट’ नाम से अभियान चलाया था जिसमें वहां मौजूद करीब 70 भारतीय सैनिकों को भी वापस भेजने का चुनावी वादा शामिल था।
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