मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पुणे के पोर्श कार हादसे के मामले में तमाम पहलुओं के बीच पुणे पुलिस कमिश्नर अमितेश कुमार ने सभी आरोपियों पर कार्रवाई का आश्वासन दिया है। इस मामले में पुणे पुलिस कमिश्नर ने कहा कि जहां तक मामले की बात है, मिले सबूतों के आधार पर जांच की जा रही है और हम सुनिश्चित करेंगे कि सभी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए। बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने 25 जून को हादसे में कथित तौर पर शामिल 17 साल के नाबालिग लड़के को निगरानी गृह से तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया था। जो करीब 36 दिनों तक किशोर न्याय बोर्ड के निगरानी गृह में था। वहीं बॉम्बे हाई कोर्ट ने नाबालिग को निगरानी गृह में भेजने के आदेश को अवैध माना और इस बात पर जोर दिया कि किशोरों से संबंधित कानून का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए और कहा कि न्याय को हर चीज से ऊपर प्राथमिकता दी जानी चाहिए। बॉम्बे हाई कोर्ट की जस्टिस भारती डांगरे और मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने इस बात पर जोर दिया कि न्याय को परिणामों की परवाह किए बिना महसूस किया जाना चाहिए। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि वह उस दुखद हादसे को लेकर हो रहे हंगामे से प्रभावित नहीं है जिसके परिणामस्वरूप दो निर्दोष लोगों की जान चली गई।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस दौरान हाई कोर्ट ने किशोर न्याय बोर्ड के रिमांड आदेशों की आलोचना करते हुए उन्हें अवैध बताया और कहा कि यह बिना अधिकार क्षेत्र के पारित किया गया था। अदालत ने स्थिति से निपटने के लिए पुलिस को भी फटकार लगाई और कहा कि कानून, प्रवर्तन एजेंसियां जनता के दबाव के आगे झुक गई हैं। बता दें कि कोर्ट के आदेश में कहा गया है, कि हालांकि जांच शाखा सहित प्रतिवादियों की तरफ से जिस तरह से पूरे मामले को संभाला गया है, हम केवल इस पूरे दृष्टिकोण को दुर्भाग्यपूर्ण घटना बताकर अपनी निराशा और व्यथा व्यक्त कर सकते हैं और आशा और विश्वास करते हैं कि भविष्य में की जाने वाली कार्रवाई कानून के मौजूदा प्रावधानों के अनुसार होगी, जिसमें किसी भी तरह की जल्दबाजी नहीं की जाएगी। उच्च न्यायालय ने कहा कि हमें पीड़ित और उनके परिवारों के प्रति पूरी सहानुभूति है, लेकिन एक न्यायालय के रूप में, हम कानून को लागू करने के लिए बाध्य हैं। इस दौरान न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि अपराध की गंभीरता के बावजूद, किशोर न्याय अधिनियम के तहत आरोपी अभी भी एक बच्चा है और उसके साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए। अधिनियम का उद्देश्य किशोर अपराधियों का पुनर्वास और सामाजिक एकीकरण करना है और पर्यवेक्षण गृह में कारावास केवल तभी स्वीकार्य है जब जमानत नहीं दी गई हो। वहीं इस मामले में पुणे कोर्ट में बचाव पक्ष के वकील ने नाबालिग आरोपी के पिता और दादा के जमानत के लिए आवेदन दिया था, जिसपर सुनवाई करते हुए पुणे कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया है।
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