मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियरों के पिघलने के कारण होने वाली बारिश में वृद्धि के कारण तिब्बत के सुरम्य हिमालयी क्षेत्र में स्थित कई झीलों में अरबों टन पानी भर सकता है। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के एक समूह ने अपनी एक अध्य्यन रिपोर्ट में यह दावा किया है। रिपोर्ट के अनुसार, इससे चीन को भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है। सदी के अंत तक, किंघई-तिब्बत पठार में कुछ झीलों का सतही क्षेत्रफल 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ सकता है। पठार में झीलों के जल की मात्रा में 600 बिलियन टन से अधिक की वृद्धि होने का अनुमान है।
मीडिया की माने तो रिपोर्ट के मुताबिक, हमारे परिणामों से पता चलता है कि 2100 तक, कम उत्सर्जन परिदृश्य में भी, तिब्बती पठार पर मौजूद ‘एंडोर्फिक’ झीलों का सतही क्षेत्र 50 प्रतिशत से अधिक (लगभग 20,000 वर्ग किमी या 7,722 वर्ग मील) बढ़ जाएगा और 2020 की तुलना में जल स्तर लगभग 10 मीटर (32 फीट) बढ़ जाएगा। एंडोर्फिक झील उन झील को कहा जाता है जिसमें जल संग्रह होता है और पानी बाहर की ओर नहीं बहता जिससे इनमें साल भर पानी रहता है।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, चीन, वेल्स, सऊदी अरब, अमेरिका और फ्रांस के वैज्ञानिकों ने कहा कि पिछले 50 वर्षों में इस क्षेत्र में जल भंडारण में जो वृद्धि हुई है, उसकी तुलना में यह चार गुना अधिक होगी। अध्ययन में कहा गया कि अगर इस स्थिति से निपटने की कोशिश नहीं की गई तो, एक हजार किलोमीटर से अधिक लंबी सड़क, करीब 500 बस्तियां और 10 हजार वर्ग किलोमीटर की पारिस्थितिकी जैसे घास के मैदान, दलदल और खेत जलमग्न हो जाएंगे।
मीडिया में आई खबर के अनुसार, अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि झीलों का आकार बढ़ने और ग्लेशियरों के पिघलने का असर भारत जैसे पड़ोसी देशों पर भी हो सकता है क्योंकि ब्रह्मपुत्र सहित भारत में बहने वाली कई बड़ी नदियों का उद्गम स्थल तिब्बत ही है। क्विंगहई-तिब्बत के पठार को ‘एशिया का जल स्तंभ’ कहा जाता है। यह दुनिया का सबसे ऊंचा पठार है और इसमें एक हजार से अधिक झील हैं जिनमें पानी एवं हिम के रूप में जल का विशाल भंडार है।
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