SC: महिला से क्रूरता पर भारतीय न्याय संहिता में जरूरी बदलावों पर विचार करे केंद्र; सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

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मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 और 86 में आवश्यक बदलाव करने पर विचार करने को कहा है ताकि झूठी या अतिरंजित शिकायतें दर्ज करने के लिए इसके दुरुपयोग को रोका जा सके। शीर्ष अदालत ने कहा कि सहनशीलता और सम्मान एक अच्छे विवाह की नींव हैं। छोटे-मोटे झगड़ों को तूल नहीं देना चाहिए। इस टिप्पणी के साथ ही शीर्ष अदालत ने एक महिला के उसके पति के खिलाफ दायर दहेज-उत्पीड़न के मामले को रद्द कर दिया। साथ ही पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को भी खारिज कर दिया जिसमें पति की उसके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग को खारिज कर दिया गया था।

जानकारी के लिए बता दें कि,जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, शीर्ष अदालत ने 14 साल पहले केंद्र से दहेज विरोधी कानून पर फिर से विचार करने को कहा था क्योंकि बड़ी संख्या में शिकायतों में घटना के अतिरंजित संस्करण देखने को मिलते हैं। भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 के मुताबिक किसी महिला का पति या पति का रिश्तेदार अगर महिला के साथ क्रूरता करेगा तो उसे तीन साल तक की कैद की सजा दी जाएगी और इसके लिए उस पर जुर्माना भी लगेगा। वहीं धारा 86 क्रूरता की परिभाषा का विस्तार करती है। इसमें महिला को मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की हानि पहुंचाना शामिल है।

इन धाराओं में बदलाव का सुझाव
-धारा 85-इसमें पति या रिश्तेदार की क्रूरता पर तीन साल की सजा का प्रावधान
-धारा 86-इसमें महिला को मानसिक और शारीरिक दोनों तरह का आघात पहुंचाना

मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पीठ ने कहा कि वह एक जुलाई से लागू होने वाली भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 85 और 86 पर गौर करेगी। ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या संसद ने इस पर न्यायालय के सुझाव पर गंभीरता से गौर किया है। शीर्ष अदालत ने रजिस्ट्री को इस फैसले की एक-एक प्रति केंद्रीय कानून और गृह सचिव को भेजने का निर्देश दिया है, जो इसे कानून और न्याय मंत्री के साथ-साथ गृह मंत्री के समक्ष रखेंगे।

Image Source : ANI

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