Supreme Court: महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक और कदम, सुप्रीम कोर्ट बार में एक तिहाई महिला आरक्षण देने का आदेश

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Supreme Court: महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक और कदम, सुप्रीम कोर्ट बार में एक तिहाई महिला आरक्षण देने का आदेश
(औद्योगिक उत्पादन) Image Source : Amar Ujala

मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक और कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) चुनाव में एक तिहाई महिला आरक्षण लागू करने का आदेश दिया है। यह व्यवस्था वर्ष 2024 के चुनावों से ही प्रभावी होगी।

मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि 2024-25 के आगामी चुनावों में एससीबीए के कोषाध्यक्ष का पद एक महिला उम्मीदवार के लिए आरक्षित किया जाएगा। पीठ ने स्पष्ट किया कि यह आरक्षण पात्र महिला सदस्यों को अन्य पदों के लिए चुनाव लड़ने से नहीं रोकेगा।

मीडिया सूत्रों के अनुसार, शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि एससीबीए के पदाधिकारियों का एक पद विशेष रूप से महिलाओं के लिए बारी-बारी से और रोटेशन के आधार पर आरक्षित किया जाएगा। पीठ ने कहा कि यह विशेष महिला आरक्षण 2024-25 के चुनावों के लिए कोषाध्यक्ष पद से शुरू होगा।

मीडिया में आई खबर के अनुसार, अदालत ने निर्देश दिया कि एससीबीए की कनिष्ठ कार्यकारी समिति (9 में से 3) और वरिष्ठ कार्यकारी समिति (6 में से 2) में महिलाओं के लिए न्यूनतम 1/3 आरक्षण होगा। 16 मई को चुनाव होने हैं। वोटों की गिनती 18 मई को शुरू होगी। परिणाम 19 मई को घोषित किए जाएंगे।

मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस से यह जानना चाहा है कि क्या उसके राज्य में पुलिस के सम्मक्ष दिए गए इकबालिया बयान को चार्जशीट में शामिल करने की प्रथा है? दरअसल, जांच के दौरान दर्ज आरोपियों के बयानों को चार्जशीट में शामिल करने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने असहमति जताई है। शीर्ष अदालत ने कहा कि उनमें से कुछ बयान कथित इकबालिया बयान की प्रकृति के हैं।

मीडिया सूत्रों के अनुसार, जस्टिस अभय एस ओका व जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा, हमने पाया है कि आरोपियों के तथाकथित बयान जो कथित तौर पर पूछताछ के दौरान दर्ज किए गए हैं, आरोपपत्र का हिस्सा हैं। उनमें से कुछ इकबालिया बयान की प्रकृति के हैं। प्रथम दृष्टया, यह अवैध है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 (धारा 24 से 26) के अनुसार, पुलिस हिरासत में अभियुक्त की ओर से की गई स्वीकारोक्ति साक्ष्य में स्वीकार्य नहीं है। शीर्ष अदालत ने उप्र के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया है कि आरोपियों के पुलिस के सामने दिए इकबालिया बयान समेत अन्य बयानों को आरोपपत्र में शामिल करने की प्रथा के संबंध में जांच करें।

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