UNSC: पांच सदस्य कब तक 188 देशों की सामूहिक आवाज को कुचलते रहेंगे, यूएनएससी को लेकर भारत की दो टूक

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UNSC: पांच सदस्य कब तक 188 देशों की सामूहिक आवाज को कुचलते रहेंगे, यूएनएससी को लेकर भारत की दो टूक
Image Source : Amar Ujala

मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, भारत ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में सुधार की जरूरत पर जोर दिया। देश ने सवाल उठाया कि यूएनएसी के पांच स्थायी सदस्यों की इच्छा कितने समय तक संयुक्त राष्ट्र के 188 सदस्य देशों की सामूहिक आवाज पर हावी होती रहेगी।

मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों, खासतौर पर चीन को लताड़ते हुए कहा कि इस निकाय में भारत की स्थायी उपस्थिति के बिना न्यायसंगत और समावेशी दुनिया बनाना संभव नहीं है। सुरक्षा परिषद सुधार और भविष्य के दृष्टिकोण पर अंतर-सरकारी वार्ता को संबोधित करते हुए कंबोज ने शनिवार को कहा कि सुरक्षा परिषद में साहसिक दृष्टिकोण के साथ सुधारों की जरूरत है।

मीडिया सूत्रों के अनुसार, दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में अब भी पांच स्थायी सदस्य अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन शामिल हैं। जबकि, भारत समेत दुनिया के कई देशों की लंबे समय से यह मांग रही है कि सुरक्षा परिषद सहित संयुक्त राष्ट्र के तमाम निकायों को बदले हुए वक्त और हालात के मुताबिक सुधारा जाना चाहिए। लेकिन, कुछ सदस्य देशों की मनमानी की वजह से ये सुधार संभव नहीं हो पा रहे हैं। कंबोज ने कहा, बीते कई दशकों में बड़े बदलाव हुए हैं। दुनिया में भारत, जर्मनी और जापान जैसी कई नई ताकतें उभरी हैं, जबकि फ्रांस तथा ब्रिटेन जैसे देशों का पतन हुआ है। इस तरह की स्थिति में भी भारत की मांग को दशकों से अनसुना किया जा रहा है। कंबोज ने सभी स्थायी देशों को फटकार लगाते हुए कहा कि आखिर कब तक 5 स्थायी देश 188 देशों की सामूहिक इच्छा की अवहेलना करते रहेंगे। इसे अब बदलना ही होगा।

मीडिया में आई खबर के अनुसार, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2020 में संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगांठ पर कहा था कि प्रासंगिक बने रहने के लिए संयुक्त राष्ट्र को सुधारों से गुजरना होगा। उन्होंने कहा, आज हम एक-दूसरे से जुड़ी हुई दुनिया में रहते हैं, जहां एक ऐसे बहुपक्षीय मंच की जरूरत है, जो आज की हकीकत को दर्शाए और सभी हितधारकों को आवाज उठाने का मौका दे। व्यापक सुधारों के बिना पुराने ढांचे के साथ आज की चुनौतियों का मुकाबला नहीं हो सकता।

मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, विश्व व्यवस्था में ग्लोबल साउथ के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को रेखांकित करते हुए कंबोज ने कहा कि अब सभी को समान अवसर देने की जरूरत है, लिहाजा सुरक्षा परिषद में सुधार करके स्थायी और अस्थायी दोनों ही तरह के सदस्यों की संख्या बढ़ाई जाए। इनमें एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों को शामिल किया जाए।

मीडिया सूत्रों के अनुसार, सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का विरोध चीन कर रहा है। शेष चारों देश खुले तौर पर भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन कर चुके हैं। असल में चीन चाहता है कि एशिया में वह अकेले सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य रहे। चीन यह बात भूल जाता है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बदौलत ही सुरक्षा परिषद में उसे स्थान मिला था। पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू ने सुरक्षा परिषद में भारत के बदले चीन को स्थायी जगह दिए जाने की पैरवी की थी। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र के तहत सुरक्षा परिषद की स्थापना वैश्विक शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए की गई थी। फिलहाल, सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य हैं। इनमें से 5 स्थायी और 10 अस्थायी सदस्य देश हैं। स्थायी सदस्य देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस के पास वीटो शक्ति है, जिससे वे किसी भी प्रस्ताव को रोक सकते हैं। इन देशों का संयुक्त राष्ट्र के कामकाज पर व्यापक प्रभाव है।

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