West Bengal: ‘मेरा राजनीतिक भविष्य कैसा होगा, नहीं जानता’, यूसुफ पठान से हारकर बोले अधीर रंजन चौधरी

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West Bengal: 'मेरा राजनीतिक भविष्य कैसा होगा, नहीं जानता', यूसुफ पठान से हारकर बोले अधीर रंजन चौधरी
(अधीर रंजन चौधरी ) Image Source : Amar Ujala

मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पश्चिम बंगाल के बहरामपुर संसदीय क्षेत्र से हार के एक दिन बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पांच बार के सांसद अधीर रंजन चौधरी ने बुधवार को कहा कि वह नहीं जानते कि उनका राजनीतिक भविष्य कैसा होगा। पार्टी की पश्चिम बंगाल इकाई के प्रमुख चौधरी को तृणमूल कांग्रेस के स्टार उम्मीदवार और पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान ने 85,000 से अधिक मतों के अंतर से हरा दिया।

मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, चौधरी की पराजय के साथ ही कांग्रेस ने बहरामपुर पर अपनी राजनीतिक पकड़ खो दी, जो राज्य में कांग्रेस का अंतिम गढ़ था। पार्टी को केवल एक सीट मालदा दक्षिण पर जीत मिली है। अपने बहरामपुर आवास पर एक बांग्ला टीवी चैनल से बात करते हुए चौधरी ने कहा कि उन्हें आशंका है कि आने वाला समय उनके लिए कठिन होगा।

मीडिया में आई खबर के अनुसार, चौधरी (68) ने कहा, “इस सरकार से लड़ने के प्रयास में मैंने अपनी आय के स्रोतों की अनदेखी की है। मैं खुद को बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे का) सांसद कहता हूं। राजनीति के अलावा मेरे पास कोई और कौशल नहीं है। इसलिए आने वाले दिनों में मेरे लिए मुश्किलें खड़ी होंगी और मुझे नहीं पता कि उनसे कैसे पार पाया जाए।”

मीडिया सूत्रों के अनुसार, चौधरी ने पुष्टि की कि वह अपना सांसद आवास खाली करने के लिए जल्द ही राजधानी जाएंगे। उन्होंने कहा, “मेरी बेटी एक छात्रा है और कभी-कभी अपनी पढ़ाई के लिए इस जगह का इस्तेमाल करती है। मुझे वहां एक नया घर ढूंढना होगा, क्योंकि मेरे पास कोई घर नहीं है।”

मीडिया में आई खबर के अनुसार, चुनाव के बाद ममता बनर्जी की ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ निकटता पर बात करते हुए चौधरी ने कहा कि उन्होंने गठबंधन में टीएमसी की मौजूदगी पर कभी आपत्ति नहीं जताई। हालांकि चौधरी ने इस बात से सहमति जताई कि उन्होंने बनर्जी के साथ गठबंधन का विरोध करते हुए पार्टी हाईकमान के समक्ष अपनी बात रखी है, क्योंकि उनका मानना है कि यह राजनीतिक आत्महत्या के समान होगा।

मीडिया सूत्रों के अनुसार, यह पूछे जाने पर कि क्या वह प्रदेश कांग्रेस प्रमुख के पद पर बने रहेंगे तो उन्होंने कहा, “मैंने चुनाव में अपनी हार स्वीकार कर ली है और पहले अपने नेताओं से इस पद के लिए मुझसे ज्यादा योग्य व्यक्ति को खोजने का आग्रह करते हुए अपना पद छोड़ना चाहता था। मैं सोनिया गांधी के अनुरोध पर रुका रहा। मुझे अभी तक अपने नेताओं की ओर से कोई फोन नहीं आया है। फोन आने पर मैं एक बार फिर पार्टी को अपनी इच्छा से अवगत कराउंगा।”

मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, चौधरी ने कहा कि बहरामपुर में प्रचार के लिए किसी नेता को न भेजना पार्टी का विवेकाधिकार है और इस बारे में वह कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। उन्होंने कहा, “जब राहुल गांधी की ‘पूरब-पश्चिम भारत जोड़ो यात्रा’ मुर्शिदाबाद पहुंची तो हमने उसमें हिस्सा लिया। हमारे पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक बार मालदा में प्रचार किया, लेकिन बहरामपुर कभी नहीं आए। यह हमारे केंद्रीय नेतृत्व का फैसला था, जिसके बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है।” साल 1999 से बहरामपुर से सांसद चौधरी के लिए यह शायद सबसे कठिन चुनावी मुकाबला था, जिसमें उन्हें गुजरात के रहने वाले टीएमसी उम्मीदवार यूसुफ पठान से शिकस्त का सामना करना पड़ा।

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