मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इकबालपुर चीनी मिल प्रबंधन की ओर से 724 किसानों के फर्जी दस्तावेज तैयार कर 36.50 करोड़ रुपये का कृषि ऋण लेने के मामले में लक्सर चीनी मिल में गन्ना प्रबंधक पवन ढींगरा और शाकुंभरी चीनी मिल बेहट सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में एकाउंटेंट उमेश शर्मा को गिरफ्तार किया गया है। दोनों इकबालपुर चीनी मिल में तैनात रह चुके हैं। करोड़ों की इस धोखाधड़ी में पंजाब नेशनल बैंक के तत्कालीन प्रबंधक की मिलीभगत भी सामने आई है। पुलिस अन्य आरोपितों की गिरफ्तारी के लिए दबिश दे रही है। इस मामले की विवेचना सीबीसीआइडी कर रही है। वर्ष 2008 से लेकर 2020 तक इकबालपुर चीनी मिल प्रबंधन ने 724 किसानों के नाम से पंजाब नेशनल बैंक की इकबालपुर शाखा से 36.50 करोड़ रुपये का ऋण लिया था। इसमें कुछ ऐसे भी लोग थे, जिनके नाम पर जमीन ही नहीं थी। उनके फर्जी दस्तावेज तैयार कर यह ऋण लिया गया था। फसली ऋण जमा नहीं होने पर बैंक की ओर से संबंधित कर्जदारों को नोटिस जारी किए गए तो हड़कंप मच गया था। किसान नेता पदम भाटी ने सूचना के अधिकार के तहत बैंक से सभी दस्तावेज लिए। इस मामले में तत्कालीन चौकी प्रभारी इकबालपुर मोहन कठैत ने 19 अप्रैल 2021 को चीनी मिल प्रबंधक और तत्कालीन पीएनबी मैनेजर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। बाद में इस मामले की विवेचना आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) सीबीसीआरडी को भेज दी गई।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, पुलिस जांच में दोषी पाए गए आरोपितों पर शिकंजा कसना शुरू किया गया है। अब पुलिस ने तत्कालीन गन्ना प्रबंधक इकबालपुर पवन ढींगरा और एकाउंटेंट उमेश शर्मा को गिरफ्तार कर लिया है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रमेंद्र डोबाल ने बताया कि इस मामले में बैंक प्रबंधक समेत तीन अन्य आरोपितों की गिरफ्तारी के लिए भी लगातार दबिश दी जा रही है। जल्द ही आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा। कबालपुर चीनी मिल प्रबंधन ने उस दौरान मिल गेट पर जूतों पर पालिश करने वाले मोची, साइकिल व बुग्गी के टायर पंचर जोड़ने वाले, माली आदि को फर्जी किसान बनाकर उनके जमीन के फर्जी कागजात तैयार कर दिए थे। वहीं बैंक प्रबंधक ने उनको प्रमाणित करते हुए सभी के संयुक्त खाते खोले थे। इसके बाद इस धनराशि को खातों से निकाल लिया गया। कई साल तक यह खेल चलता रहा। जमीन की नकल पर तहसीलदार के फर्जी साइन और मुहर लगी थी। ज्येष्ठ गन्ना विकास निरीक्षकों के भी फर्जी हस्ताक्षर किए गए थे। किसानों की बेटी, पत्नी आदि को भी किसान दर्शाकर उनके नाम पर ऋण लिया गया था, जबकि पत्नी और बच्चों के नाम पर जमीन तक नहीं थी।
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