जब श्रीकृष्ण ने बर्करीक से प्रसन्न होकर कहा- आज से आप मेरे नाम ”श्याम” से प्रसिद्ध होओगे..

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DailyAawaz Exclusive Story: आज कार्तिक पूर्णिमा पर हम आपको खाटू श्याम बाबा की अद्भुत कहानी बताने जा रहे हैं। राजस्थान के सीकर जिले में श्री खाटू श्याम जी का सुप्रसिद्ध मंदिर विराजमान है। श्री खाटू श्याम बाबा के भक्तों की कोई गिनती नहीं है। श्री खाटू श्याम बाबा कौन थे, उनके जन्म और जीवन चरित्र के बारे में आइये जानते हैं।

खाटू श्याम जी का असली नाम बर्बरीक है। महाभारत की एक कथा के अनुसार बर्बरीक का सिर राजस्थान प्रदेश के खाटू नगर में दफना दिया था, इसीलिए बर्बरीक जी का नाम खाटू श्याम बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वर्तमान में खाटूनगर सीकर जिले के नाम से जाना जाता है। श्री खाटू श्याम बाबा जी कलियुग में श्री कृष्ण भगवान के अवतार के रूप में माने जाते हैं।

शास्त्रों के अनुसार श्री खाटू श्याम बाबा, घटोत्कच और नागकन्या मौरवी के पुत्र हैं। पांचों पांडवों में सर्वाधिक बलशाली भीम और उनकी पत्नी हिडिम्बा बर्बरीक के दादा-दादी थे। कहा जाता है कि जन्म के समय बर्बरीक के बाल बब्बर शेर के समान थे, इसलिये उनका नाम बर्बरीक रखा गया। बर्बरीक का नाम श्याम बाबा कैसे पड़ा आइये अब इस कथा को समझते हैं-

बर्बरीक बचपन से ही एक वीर और तेजस्वी बालक थे। कहा जाता है कि बर्बरीक ने भगवान श्रीकृष्ण और अपनी माँ मौरवी से युद्धकला, कौशल सीखकर निपुणता प्राप्त कर ली थी। यह भी विख्यात है कि बर्बरीक ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी, जिसके आशीर्वादस्वरुप भगवान शिव ने बर्बरीक को 3 चमत्कारी बाण प्रदान किए थे। इसी के फलस्वरूप बर्बरीक का नाम तीन बाणधारी के रूप में भी प्रसिद्ध है। यह भी कहा जाता है कि भगवान अग्निदेव ने बर्बरीक को एक दिव्य धनुष दिया था, जिससे वो तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने में समर्थ हो गये थे।

जब कौरवों-पांडवों का युद्ध होने का सूचना बर्बरीक को मिली तो उन्होंने भी युद्ध में भाग लेने का निर्णय किया और बर्बरीक अपनी माँ का आशीर्वाद लेकर, हारे हुए पक्ष का साथ देने का उन्हें वचन देकर निकल पड़े। तभी से इसी वचन के कारण “हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा” यह बात प्रसिद्ध हुई।

जब बर्बरीक जा रहे थे तो उन्हें मार्ग में एक ब्राह्मण मिला। यह ब्राह्मण कोई और नहीं, भगवान श्रीकृष्ण थे जो कि बर्बरीक की परीक्षा लेना चाहते थे। ब्राह्मण बने श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से प्रश्न किया कि वो मात्र 3 बाण लेकर लड़ने को जा रहा है ? मात्र 3 बाण से कोई युद्ध कैसे लड़ सकता है ? बर्बरीक ने कहा कि उनका एक ही बाण शत्रु सेना को समाप्त करने में सक्षम है और इसके बाद भी वह तीर नष्ट न होकर वापस उनके तरकश में आ जायेगा। तीनों तीर के उपयोग से तो सम्पूर्ण जगत का विनाश किया जा सकता है।

ब्राह्मण (श्रीकृष्ण) ने बर्बरीक से एक पीपल के वृक्ष की ओर इशारा करके कहा कि वो एक बाण से पेड़ के सारे पत्तों को भेदकर दिखाए। बर्बरीक ने भगवान का ध्यान कर एक बाण छोड़ दिया और उस बाण ने पीपल के सारे पत्तों को छेद दिया और उसके बाद बाण ब्राह्मण बने श्रीकृष्ण के पैर के चारों तरफ घूमने लगा। असल में श्रीकृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे छिपा दिया था। बर्बरीक समझ गये कि तीर उसी पत्ते को भेदने के लिए ब्राह्मण के पैर के चक्कर लगा रहा है। तब बर्बरीक बोले – हे ब्राह्मण अपना पैर हटा लो, नहीं तो ये आपके पैर को वेध देगा।

श्रीकृष्ण बर्बरीक के पराक्रम से प्रसन्न हुए। उन्होंने बर्बरीक से पूँछा कि वे किस पक्ष की तरफ से युद्ध करेंगे। बर्बरीक बोले कि उन्होंने लड़ने के लिए कोई पक्ष निर्धारित किया है, वो तो बस अपने वचन अनुसार हारे हुए पक्ष की ओर से लड़ेंगे। श्रीकृष्ण ये सुनकर विचारमग्न हो गये क्योंकि बर्बरीक के इस वचन के बारे में कौरव जानते थे। कौरवों ने योजना भी बनाई थी कि युद्ध के पहले दिन वो कम सेना के साथ युद्ध करेंगे और इससे कौरव युद्ध में हराने लगेंगे, जिसके कारण बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ने आ जायेंगे। अगर बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ेंगे तो उनके चमत्कारी बाण पांडवों का नाश कर देंगे।

कौरवों की योजना को विफल करने के लिए ब्राह्मण बने श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से एक दान देने का वचन माँगा। बर्बरीक ने दान देने का वचन दे दिया। अब ब्राह्मण ने बर्बरीक से कहा कि उसे दान में बर्बरीक का सिर चाहिए। इस अनोखे दान की मांग सुनकर बर्बरीक आश्चर्यचकित हुए और समझ गये कि यह ब्राह्मण कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है। बर्बरीक ने प्रार्थना कि वो दिए गये वचन अनुसार अपने शीश का दान अवश्य करेंगे, लेकिन पहले ब्राह्मणदेव अपने वास्तविक रूप में प्रकट हों..

भगवान कृष्ण अपने असली रूप में प्रकट हुए। बर्बरीक बोले कि हे देव ! मैं अपना शीश देने के लिए बचनबद्ध हूँ लेकिन मेरी युद्ध अपनी आँखों से देखने की इच्छा है। श्रीकृष्ण बर्बरीक की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर उनकी इच्छा पूरी करने का आशीर्वाद दिया। बर्बरीक ने अपना शीश काटकर श्रीकृष्ण को दे दिया। श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के सिर को अमृत से सींचकर युद्धभूमि के पास एक पहाड़ी पर स्थित कर दिया। जहाँ से बर्बरीक युद्ध का दृश्य देख सकें। इसके पश्चात श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के धड़ का शास्त्रोक्त विधि से अंतिम संस्कार कर दिया।

महाभारत का महान युद्ध समाप्त हुआ और पांडव विजयी हुए। विजय के बाद पांडवों में यह बहस होने लगी कि इस विजय का श्रेय किस योद्धा को जाता है। श्रीकृष्ण ने कहा – चूंकि बर्बरीक इस युद्ध के साक्षी रहे हैं अतः इस प्रश्न का उत्तर उन्हीं से जानना चाहिए। तब परमवीर बर्बरीक ने कहा कि इस युद्ध की विजय का श्रेय एकमात्र श्रीकृष्ण को जाता है, क्योंकि यह सब कुछ श्रीकृष्ण की उत्कृष्ट युद्धनीति के कारण ही संभव हुआ है। विजय के पीछे सबकुछ श्रीकृष्ण की ही माया थी।

बर्बरीक के इस सत्य वचन से देवताओं ने बर्बरीक पर पुष्पों की वर्षा की और उनके गुणगान गाने लगे। श्रीकृष्ण वीर बर्बरीक की महानता से अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा – हे वीर बर्बरीक आप महान हैं। मेरे आशीर्वाद स्वरुप आज से आप मेरे नाम “श्याम” से प्रसिद्ध होओगे। कलियुग में आप कृष्णअवतार रूप में पूजे जायेंगे और अपने भक्तों के मनोरथ पूर्ण करेंगे।

भगवान श्रीकृष्ण का वचन सिद्ध हुआ और आज हम देखते भी हैं कि भगवान श्री खाटू श्याम बाबा जी अपने भक्तों पर निरंतर अपनी कृपा बनाये रखते हैं। खाटू श्याम बाबा अपने वचन अनुसार हारे का सहारा बनते हैं। इसीलिए जो सारी दुनिया से हारा और सताया गया होता है तो वो भी अगर सच्चे मन से बाबा श्याम के नामों का सच्चे मन से नाम ले और स्मरण करे तो उसका कल्याण अवश्य ही होता है। श्री खाटू श्याम बाबा से श्रद्धा पूर्वक विनती है कि बाबा श्याम इसी प्रकार अपने भक्तों पर अपनी कृपा बनाये रखें..

कार्तिक पूर्णिमा और कार्तिक मास की समाप्ति पर Team DA की ओर से आप सभी को शुभकामनाएँ

जय श्रीकृष्ण, जय खाटूश्याम बाबा जी

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