भोपाल: मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, मध्य प्रदेश के तेजतर्रार आईएएस अधिकारियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा पूरे देश में मनवाया है। सिविल सर्विस डे पर मध्य प्रदेश के चार दिग्गज आईएएस अधिकारियों के बारे में बताएंगे, जिनकी सोच ने देश को एक नई गति दी है। यही नहीं, इनकी योजनाओं को दूसरे राज्यों ने भी कॉपी किया है। ये चारों अफसर आज भी मध्य प्रदेश की सरकार में स्तंभ हैं। मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव अनुराग जैन जब केंद्र में थे तो पीएम मोदी भी उनके मुरीद थे। उन्हें गति शक्ति प्रोजेक्ट के लिए पीएम मोदी से सम्मान मिल चुका है। आइए इन चार अफसरों की कहानी आपको बताते हैं।
एमपी में 382 आईएएस अफसर
मध्य प्रदेश कैडर में अभी 382 आईएएस अफसर हैं। यह प्रदेश के साथ-साथ देश के लिए भी काम कर रहे हैं। प्रदेश के कई सीनियर अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। देश के अहम मंत्रालयों में सचिव पद को संभाल रहे हैं। सभी अपनी प्रतिभा का लोहा राष्ट्रीय स्तर पर मनवा रहे हैं। वहीं, प्रदेश में रहकर भी आईएएस अधिकारी कई नवाचार के साथ बेहतरीन काम कर रहे हैं।
चार दिग्गजों ने मनवाया अपना लोहा
सिविल सर्विस डे पर मध्य प्रदेश के चार आईएएस अफसरों की योजनाओं की चर्चा हो रही है। इन अफसरों ने ऐसे काम किए, जिन्हें देश और दुनिया ने सराहा। लाड़ली लक्ष्मी योजना को 15 राज्यों ने अपनाया। पीएम गतिशक्ति ने प्रोजेक्ट्स को रफ़्तार दी। ‘ज्ञानदूत’ से गांव-गांव ऑनलाइन सेवाएं पहुंचीं। इन अफसरों को प्रतिष्ठित अवॉर्ड भी मिले। अनुराग जैन ने पीएम गतिशक्ति पोर्टल को प्लानिंग का टूल बनाया। डॉ. राजेश राजौरा ‘ज्ञानदूत’ लेकर आए। पी. नरहरि ने लाडली लक्ष्मी योजना को आकार दिया। दीपक सक्सेना ने निजी स्कूलों पर एनसीईआरटी की किताबें चलाने का दबाव बनाया।
अनुराग जैन गति शक्ति प्रोजेक्ट को दी रफ्तार
मध्य प्रदेश के वर्तमान मुख्य सचिव अनुराग जैन ने पीएम गतिशक्ति योजना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने इस योजना को प्लानिंग का एक शानदार टूल बनाया। प्रोजेक्ट्स में देरी होने का एक बड़ा कारण विभागों में तालमेल की कमी है। सड़क, रेल, मेट्रो, बिजली जैसे कामों में तालमेल जरूरी है। इसी को देखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर पीएम गतिशक्ति पोर्टल को प्लानिंग का टूल बनाया गया। अनुराग जैन ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के दौरान इसमें महत्वपूर्ण योगदान दिया। जीआईएस बेस्ड पोर्टल से विभागों और सरकारों को जरूरी डेटा एक साथ मिलने लगा। इस काम के लिए उन्हें पीएम एक्सीलेंस अवॉर्ड मिला।
ज्ञानदूत से गांव-गांव तक पहुंची सूचना
डॉ. राजेश राजौरा ने ई-गवर्नेंस का पहला प्रोजेक्ट ‘ज्ञानदूत’ शुरू किया। साल 2000 में वे धार के कलेक्टर थे। तब उन्होंने यह प्रोजेक्ट शुरू किया। उन्होंने मॉडम को सर्वर से जोड़कर ज्ञानदूत सूचना के 28 सेंटर सिर्फ 51 दिनों में अलग-अलग गांवों में खोल दिए। इसमें खसरा-खतौनी की नकल से लेकर 20 तरह की सेवाएं दी गईं। राजौरा को आईटी का सबसे बड़ा ‘स्टॉकहोम चैलेंज’ अवार्ड मिला।
लाडली लक्ष्मी योजना बनी मिसाल
एमपी के सीनियर आईएएस अधिकारी पी. नरहरि ने लाडली लक्ष्मी योजना को लिंगानुपात सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2006-07 में एक बैठक में शिशु लिंगानुपात गिरने पर चिंता जताई गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि ऐसी योजना लाएं, जो जन्म के लिए प्रोत्साहित करे। उस समया महिला बाल विकास विभाग के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहे पी. नरहरि ने तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा का दौरा किया। एक साल की मेहनत के बाद योजना ने आकार लिया। इसका नाम ‘लाडली लक्ष्मी’ रखा गया। यह योजना 1 अप्रैल 2007 को शुरू हुई।
स्कूलों की मनमानी पर कसा शिकंजा
दीपक सक्सेना ने निजी स्कूलों पर एनसीईआरटी की किताबें चलाने का दबाव बनाया। वे जबलपुर के कलेक्टर हैं। निजी स्कूल महंगी किताबें बेच रहे थे। वे एनसीईआरटी की जगह प्राइवेट पब्लिशर की किताबें चला रहे थे। स्कूलों का कहना था कि उनका कंटेंट बेहतर है। कलेक्टर सक्सेना ने जांच की तो यह दावा गलत निकला। उन्होंने आदेश दिया कि अगर प्राइवेट किताबें चलानी हैं तो उनकी खासियत बताओ। सख्ती बढ़ने पर स्कूल एनसीईआरटी की किताबें चलाने लगे। जहां पहले किताबों पर 6-7 हजार खर्च होते थे, अब 800-900 में काम चलने लगा।
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